नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने नगालैंड जैसे राज्यों में दूसरे राज्य से प्रवेश के
लिये इनर लाइन परमिट अनिवार्य करने का अधिकार देने वाले कानून को चुनौती देने वाली याचिका
मंगलवार को खारिज कर दी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति
अनिरूद्ध बोस की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा, ‘‘हम इस मामले पर विचार करने के इच्छुक नहीं है।’’
यह याचिका भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की थी। याचिका में कहा
गया था कि राज्य के भीतर ही नागरिकों के आवागमन को सीमित करने का अधिकार राज्यों को देने
वाला यह कानून मनमाना और अनुचित है तथा इससे संविधान के अनुच्छेद 14,15,19 और 21 का
उल्लंघन होता है। पीठ जब सारा काम खत्म करके उठ रही थी तो उपाध्याय ने अपनी याचिका वापस
लेने और सक्षम मंत्रालय में इस संबंध मे प्रतिवेदन करने की अनुमति मांगी। लेकिन पीठ ने ऐसा करने
से इंकार कर दिया। उपाध्याय का तर्क था कि नगालैंड मे सिर्फ आठ फीसदी हिन्दू आबादी है और राज्य
में प्रवेश के लिये इनर लाइन परमिट की अनिवार्यता का नियम संविधान के प्रावधान के खिलाफ
है।उनका कहना था कि पत्रकारों के लिये भी यह परमिट लेना अनिवार्य है। इस तरह की दलील से
प्रभावित हुये बगैर पीठ ने कहा, ‘‘अब आप पत्रकारों का समर्थन चाहते हैं।’’उपाध्याय ने अपनी याचिका में
दलील दी थी कि राज्य द्वारा भारतीय नागरिकों के लिये इनर लाइन परमिट जैसी व्यवस्था लागू करने
के विघटनकारी नतीजे हो सकते हैं और इससे अंतरराष्ट्रीय जगत में देश की गलत छवि पेश होती है।
याचिका इस तरह के प्रतिबंध की वजह से राज्य में कोई नई प्रौद्योगिकी नहीं आ सकेगी और विकास
की गति भी प्रभावित होगी। यही नहीं, इससे सांस्कृतिक समावेश रूक जाता है और नागरिक अपने ही
देश में अजनबी बन जाते हैं।याचिका के अनुसार इनर लाइन परमिट की वजह से देश के किसी भी हिस्से
में नागिरकों के निर्बाध तरीके से आने जाने के मौलिक अधिकार का हनन होता है और इससे विकास
तथा निवेश प्रभावित होता है।