नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्यक्ति की निजता के अधिकार और राष्ट्रहित के बीच संतुलन जरूरी है। ऐसे वक्त में जब देश आतंकवाद, मनी लांड्रिंग जैसे खतरों का सामना करते हुए कल्याणकारी योजनाओं के खर्च जुटाने के प्रबंध कर रहा हो तब यह और भी जरूरी हो जाता है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी तब कि जब वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सरकारी के अग्रणी आधार कार्यक्रम व उससे संबंधित 2016 के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
दीवान ने कहा कि संविधान सरकार को व्यक्ति की निगरानी की इजाजत नहीं देता, जो कि तकनीकी रूप से अब संभव है। अब प्रत्येक लेन-देन, व्यक्ति की प्रोफाइल और यहां तक कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति की निजता में दखल संभव है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आधार को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।
पीठ ने कहा, दुनिया में कोई सिस्टम सुरक्षित नहीं है। मुद्दा यह नहीं है कि डेटा कैसे संग्रहित किए गए, बल्कि यह है कि संकलित सूचनाओं का किस तरह उपयोग या दुरुपयोग हो रहा है। आतंकवाद, हवाला के दौर में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर व्यय और व्यक्ति की निजता में संतुलन होना चाहिए।
वकील दीवान ने कहा कि सेंट्रल आइडेंटीटिज डेटा डिपॉजिटरी (सीआईडीआर) आधार परियोजना के डेटा को स्टोर व मैनेज करती है। सरकार किसी व्यक्ति के डेटा को उसके जीवनकाल में जुटाकर उसकी पूरी प्रोफाइलिंग कर सकती है। सरकार आधार नंबर का इस्तेमाल कर व्यक्ति की पूरी जानकारी जुटा सकती है। वह प्रत्येक व्यक्ति की लोकेशन रीयल टाइम में पता कर सकती है। आधार सिर्फ नागरिकों की इलेक्टॉनिक मैपिंग है और ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता। नागरिकों को बिना सरकार की नजर में आए रहने का अधिकार है।
गूगल नहीं कर रहा ट्रेक?
इस पर कोर्ट ने कहा कि क्या हम गूगल मैप की सेवाएं नहीं ले रहे हैं? क्या वह हमें ट्रेक नहीं करता है? क्या हम अन्य निजी ऐसी कंपनियों की सेवाएं नहीं ले रहे हैं? इस पर दीवान ने कहा कि गूगल कोई सरकार नहीं है और वह भी सहमति का विषय है। जब सरकार रीयल टाइम में ट्रेक करती है तो वह पुलिस की निगरानी जैसा है। संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। यद्यपि गूगल शक्तिशाली है, लेकिन वह सरकार जितना शक्तिशाली नहीं है।