लखनऊ। सेना के एक जवान को पहले अनुपस्थित रहने पर भगोड़ा घोषित किया। कुछ दिन बाद जवान की मौत हो गई। जवान की मौत के बाद उसकी पत्नी ने पेंशन के हक की लड़ाई पांच साल लड़ी। अब सशस्त्र बल अधिकरण ने महिला को पेंशन जारी करने का आदेश रक्षा मंत्रालय को दिया है। अधिकरण ने सेनाध्यक्ष के आदेश को भी निरस्त कर दिया है।
लखनऊ के मोहनलालगंज निवासी राइफलमैन संतोष कुमार आठ जनवरी, 1999 को सेना की राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। वह सात मई, 2007 को 15 दिनों के आकस्मिक अवकाश पर लखनऊ अपने घर आए थे। संतोष कुमार अवकाश के बाद जून, 2007 में नई दिल्ली स्थित अपनी यूनिट में रिपोर्ट करने पहुंचे लेकिन, सेना ने उनको ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने दिया।
इसके बाद संतोष कुमार लखनऊ आए और पत्नी आशा सिंह को लेकर फिर यूनिट पहुंचे। यहां इस बार उनको बताया गया कि सेना ने तुमको भगोड़ा घोषित कर दिया है। संतोष कुमार की नौ अप्रैल, 2008 को एक सड़क हादसे में मौत हो गई।
संतोष कुमार की मौत के बाद पत्नी आशा सिंह के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। उन्होंने पेंशन की मांग के लिए सेनाध्यक्ष को प्रार्थना पत्र लिखा, जिसे सेनाध्यक्ष ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि भगोड़े जवान की पत्नी को पेंशन नहीं मिल सकती। इसके बाद आशा सिंह ने 2016 में सशस्त्र बल अधिकरण लखनऊ पीठ में अपील की।
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायिक सदस्य एसबीएस राठौर ने कहा कि सेना ने राइफलमैन संतोष कुमार को अवकाश के बाद ड्यूटी पर ज्वाइन नहीं कराया। इतना ही नहीं, सेना ने संतोष कुमार को न तो बर्खास्त किया और न ही डिस्चार्ज। ऐसे में उनको ड्यूटी पर ही माना जाएगा।
अधिकरण ने यह भी सवाल उठाया कि यदि संतोष कुमार भगोड़ा थे तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? यदि कार्रवाई नहीं की गई है तो पेंशन न देने का आदेश बेईमानी है। सेना की गलतियों का खामियाजा जवान और उनकी पत्नी नहीं भुगत सकती।
सशस्त्र बल अधिकरण बार एसोसिएशन के महासचिव विजय कुमार पांडेय ने बताया कि अधिकरण ने सेनाध्यक्ष के आदेश को निरस्त कर राइफलमैन संतोष कुमार सिंह की मृत्यु की तिथि से उनकी पत्नी आशा सिंह को नौ प्रतिशत ब्याज के साथ बकाए पेंशन के एरियर और पेंशन का भुगतान करने का आदेश दिया है।