नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के तर्कवादी दिवंगत नरेंद्र दाभोलकर की बेटी की उस याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया, जिसमें एक आरोपी को बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी।
अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाले दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को पुणे में मोटरसाइकिल सवार दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने आरोपी को जमानत देते हुए एक तर्कसंगत आदेश पारित किया है।
पीठ ने कहा, ”हमें इस अपील पर विचार करने का कोई कारण नहीं मिला। इसे खारिज किया जाता है।”
मुक्ता दाभोलकर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है। ‘फोरेंसिक’ जांच के दौरान एक गवाह ने कहा था कि आरोपी इसमें शामिल था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पाया कि सह-अभियुक्त द्वारा दिया गया बयान मेल नहीं खाता है। वहीं आरोपी छह मई 2021 से जमानत पर बाहर है।
मुक्ता ने बंबई उच्च न्यायालय के छह मई 2021 के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था जिसमें दाभोलकर हत्या के मामले में आरोपी विक्रम भावे को जमानत दे दी थी।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि सीबीआई द्वारा पेश तथ्य व सामग्री ” प्रथम दृष्टया भावे के खिलाफ लगाए आरोपों को सच साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।”
भावे पर दो अन्य आरोपियों सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर की मदद करने का आरोप है, जिन्होंने 20 अगस्त 2013 को पुणे में दाभोलकर को कथित तौर पर गोली मार दी थी।
कालस्कर द्वारा दिए गए एक बयान के आधार पर भावे को 25 मई 2019 को वकील संजीव पुनालेकर के साथ गिरफ्तार किया गया था। पुनालेकर को जून 2019 में पुणे की सत्र अदालत ने जमानत दे दी थी।
पुणे की एक सत्र अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद, भावे ने 2021 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
सीबीआई मामले के अनुसार, पुनालेकर ने कालस्कर को दाभोलकर की हत्या में इस्तेमाल किए गए आग्नेयास्त्रों को नष्ट करने का निर्देश दिया था।