नई दिल्ली।दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं/ बोलियों का साहित्य ग्रामीण आंचल में छुपी भारतीय संस्कृति को प्रकाश में लाता है। उन्होने कहा कि हर क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति होती है जिसे साहित्य प्रतिबिंबित करता है; इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं में जितना अधिक साहित्य सृजन होगा, भारतीय संस्कृति और साहित्य उतने ही अधिक समृद्ध होंगे। प्रो. योगेश सिंह, पवन सोंटी द्वारा लिखित हरियाणवी कथा संग्रह “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” के विमोचन अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइसरीगल लॉज के काउंसिल रूम में बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। पुस्तक विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर ने कहा कि पुस्तकों के रूप में साहित्य और संस्कृति को लंबे समय तक सहेजा जा सकता है।
विमोचन के पश्चात उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आंचलिक कहानियों में कहीं न कहीं तत्कालीन प्रथाओं और लोकजीवन का वर्णन जरूर मिलता है। वक्त के साथ संस्कृति में तो बदलाव आता है, लेकिन साहित्य उस क्षेत्र विशेष की तत्कालीन सांस्कृतिक विशेषताओं को सहेजकर आगामी पीढ़ियों को हस्तांतरित करता है। उन्होने कहा कि पुस्तक के लेखक पवन सोंटी ने इन कहानियों में करीब 100-150 साल के कालखंड के ग्रामीण जीवन का बहुत ही बारीकी और मार्मिक ढंग से वर्णन किया है। उन्होने “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” की कहानियों के सारांश सुनाते हुए कहा कि इन कहानियों में जहां पुराने समय में साहूकारी व्यवस्था में फंसे किसान की दुर्दशा का सटीक वर्णन है, तो वहीं वर्तमान समय में पंजाब व हरियाणा से विदेश पलायन के मामले में गलत लोगों के हाथों में फंस कर अवैध तरीके से विदेश जाने और मुसीबतों में उलझने वाले युवाओं की दशा का भी बहुत ही मार्मिक वर्णन किया गया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर ने अपने अध्यक्षयीय संबोधन में कहा कि हरियाणा और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहा है, लेकिन हरियाणवी भाषा में साहित्य लेखन बहुत कम हुआ है। उन्होने बताया कि “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” पुस्तक के लेखक पवन सोंटी को वह उस समय से जानते हैं जब 2004-05 में पवन सोंटी ने कुरुक्षेत्र के पत्रकारिता जगत में पदार्पण किया था। लाठर ने बताया कि सोंटी के संस्कृति के प्रति रुझान को लेकर ही मैंने उन्हें हरियाणवी में साहित्य लेखन का सुझाव दिया था। आज मुझे खुशी है हरियाणवी भाषा में उनकी कहानियों की पहली पुस्तक का विमोचन हो रहा है।
समारोह के अंत में पुस्तक “पीढ़ी-दर-पीढ़ी” के लेखक पवन सोंटी ने पुस्तक विमोचन हेतु अपना बहुमूल्य समय देने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह और दिल्ली विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक परिषद के चेयरपर्सन एवं पीआरओ अनूप लाठर का आभार जताया। उन्होने कहा कि श्री लाठर ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में 1984 से युवा एवं सांस्कृतिक विभाग के निदेशक के पद पर नियुक्ति के पश्चात हरियाणवी संस्कृति के उत्थान के लिए रत्नावली जैसे अनूठे भाषाई समारोह की बदौलत 30 वर्ष तक हरियाणवी बोली को एक सम्पूर्ण भाषा के रूप में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई। इसी दौरान 2011 में अनूप लाठर जी ने मुझे हरियाणवी भाषा में साहित्य लेखन हेतु प्रेरित किया था। पवन सोंटी ने कहा कि अनूप लाठर जैसे प्रेरक गुरु जी और डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह जी जैसे प्रेरणा स्रोत व्यक्तित्व की बदौलत ही वह इस पुस्तक को प्रकाशित करने में सफल हो सके हैं। उन्होने इस प्रेरणा के लिए भी प्रो. योगेश सिंह एवं अनूप लाठर का हृदय से आभार जताया। गौरतलब है कि पवन सोंटी फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के जनसंपर्क कार्यालय में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हैं। इस अवसर पर डीयू दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी, प्रोक्टर प्रो. रजनी अब्बी, डीयू रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद के डीन प्रो. रविंदर कुमार, डीन एकेडमिक प्रो. रतनाबली, ज्वाइंट रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार कल्चर की ज्वाइंट डीन डॉ. दीप्ति तनेजा, वीसी ऑफिस की पूर्व डिप्टी डीन डॉ. मनीषा चौधरी, प्रो. अजय कुमार आदि सहित कई शिक्षक, अधिकारी एवं स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।