भारत की महान वैदिक परंपरा और संस्कृति को पहले मुगलों, फिर अंग्रेजों ने पदाक्रांत किया। किंतु सबसे बड़ा नुकसान उन लोगों ने पहुंचाया, जिन्होंने वेद, उपनिषद, पुराण आदि का गहन अध्ययन कर उनकी व्याख्या-टीका गलत स्वरूप में कर डाली।
इससे दुनिया में भारत के प्रति गलत धारणा बनती चली गई। ऐसा करने वालों में अंग्रेज विद्वान मैक्समूलर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। बाद में इन्हीं मैक्समूलर के बारे में स्वामी दयानंद ने एक ऐसी बात कही, जिससे पूरी दुनिया चौंक गई। उन्होंने वेदों के गहन और तत्वतः अध्ययन के बाद अपनी नई व्याख्या देते हुए कहा था – ‘मैक्समूलर वेद-भाष्य के मामले में बच्चे के समान हैं।’
दरअसल, पश्चिमी जगत ने मैक्समूलर द्वारा की गई वेदों की व्याख्या के आधार पर ही भारत के प्रति गलत धारणाएं बना ली थीं। मगर जब स्वामी दयानंद का कालखंड (1824-1883) आया, तब उन्होंने सायण, महीधर, मैक्समूलर द्वारा वेदों की गलत व्याख्या करने की बात कहकर उनका जोरदार खंडन किया।
स्वामी दयानंद के तर्क और तथ्य इतने प्रबल थे कि अन्य विद्वानों के तर्क उनके आगे टिक न सके। स्वामी दयानंद द्वारा मैक्समूलर की व्याख्या बच्चे के समान कहे जाने के बाद दुनियाभर के विद्वानों में बहस छिड़ गई थी, क्योंकि इस एक कथन ने पूरे पश्चिमी जगत के दृष्टिकोण पर प्रश्न खड़ा कर दिया था। बाद में अन्य विद्वानों ने वेदों का सही अध्ययन किया।