तिरुवनंतपुरम। एक साल पहले माइलतपुरा में कोई भी रात को गहरी नींद में नहीं सो पाता था। दक्षिण-पश्चिम भारत के केरल राज्य के त्रिशूर जिले की तलहटी में स्थित गांव के निवासियों को हमेशा ही जंगली हाथियों के हमले का डर लगा रहता था। मगर, अब ग्रामीणों को हाथियों के हमले का डर नहीं है, साथ ही उन्हें एक और फायदा भी मिल रहा है।
दरअसल, हाथी जंगल के अपने रिहायशी इलाके के कम होने और भोजन की कमी के चलते अक्सर गांव व खेतों में धावा बोल देते थे। वे पौधों को उखाड़ देते थे और फसलों को कुचलकर किसानों की आय को नष्ट कर देते थे।
ग्रामीणों ने हर चीज का इस्तेमाल कर जानवरों को रोकने की कोशिश की। उन्होंने गड्ढा खोदा, परंपरागत रूप से ड्रम बजाकर हाथियों को भगाने की कोशिश की। सोलर एनर्जी से चलने वाले बिजली की बाड़ भी लगाए, लेकिन सभी बेकार साबित हुए। एक के बाद एक निवासियों ने खेती छोड़ना शुरू कर दिया।
मगर, अब मयालट्टुपाड़ा में हाथी लोगों को परेशान नहीं कर रहे हैं। इसके बजाए वे पत्रकारों, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविद हाथियों के झुंडों के वहां से चले जाने की बात सुनकर आश्चर्यचकित हैं। आप भी सोच रहे होंगे कि ग्रामीणों ने आखिर ऐसा क्या किया कि हाथियों ने गांव में आना ही छोड़ दिया।
मधुमक्खियों ने बदली जिंदगी
दरअसल, उन्होंने मधु मक्खियों को पालना शुरू कर दिया, जिनसे डरकर हाथी अब गांव में उत्पात नहीं मचाते हैं। ग्रामीणों ने तारों पर हर 10 मीटर की दूरी पर लटकने वाले लकड़ी के डिब्बों में इटैलियन मधुमक्खियों को पालना शुरू कर दिया।
निवासियों का कहना है कि हाथियों को उनके भिनभिनाने की आवाज परेशान कर देती थी और वे वहां से भागने लगे। जब हाथी तार की बाड़ को पार करने की कोशिश करते, तो गुस्साई मधुमक्खियां उन पर हमला कर देती थीं और हाथी जल्द भाग जाते हैं। वैसे इसका एक और फायदा ग्रामीणों को शहद के रुप में भी मिल रहा है।