रांची। चारा घोटाले में जेल में बंद राजद प्रमुख लालू यादव इस बार की होली अपने परिवार के साथ नहीं मना पाएंगे। कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है। इसके बाद उन्हें जेल में ही अन्य कैदियों के साथ होली के रंग लगाने होंगे।
चारा घोटाले के देवघर और चाईबासा कोषागार मामले में सीबीआई कोर्ट ने लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल और पांच साल की सजा सुनाई है। इस फैसले को उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। लालू की ओर से देघघर मामले में जमानत याचिका दायर की गई थी। सुनवाई के दौरान जबलपुर कोर्ट के वकील राजेंद्र सिंह ने कोर्ट में लालू प्रसाद की ओर से दलील रखी। कोर्ट ने उनकी दलील मानने से इंकार कर दिया।
डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद सहित अन्य आरोपी सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश प्रदीप कुमार कि अदालत में पेश हुए। इस मामले में सीबीआइ की ओर से गवाही दर्ज होनी थी, लेकिन गवाह नहीं पहुंचे। इस कारण गवाही नहीं हो सकी। अदालत ने गवाहों पर सख्ती जताते हुए उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया है।
जिन गवाहों के खिलाफ वारंट जारी किया गया है उसमें बिहार स्थित गया के डीटीओ खुर्शीद आलम अंसारी और उत्तर प्रदेश स्थित एटा के रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का नाम शामिल है। सीबीआइ के वरीय विशेष लोक अभियोजक बीएमपी सिंह ने बताया कि अदालत में गवाही के लिए खुर्शीद आलम अंसारी को समन किया गया था, लेकिन वे गवाही देने नहीं आए और न ही नहीं आने की कोई स्पष्ट जानकारी अदालत हो उपलब्ध कराई। खुद के बजाय गया के डीटीओ ने अपने लिपिक राजन कुमार को गवाही के लिए भेजा। जिनकी गवाही लेने से अदालत ने इन्कार कर दिया। कहा कि समन डीटीओ के नाम से जारी है। इसलिए गवाही देने उन्हें आना चाहिए था।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश स्थिति ईटा के रीजनल ट्रांसपोर्ट आथॉरिटी की ओर से अदालत को कोई सूचना नहीं दी गई कि वे गवाही देने के लिए अदालत में क्यों नहीं पहुंचेगे। ऐसे में अदालत ने दोनों गवाहों को नहीं आने पर गंभीरता जताई और गैर जमानतीय वारंट जारी किया।