मल्टीमीडिया डेस्क। किसी मरीज की बीमारी का पता लगाना और उसका इलाज करना डॉक्टर का रोज का काम है। मगर डॉक्टर पुष्कर वाकनिस, इस काम को नई ऊंचाईयों पर ले गए।
डॉक्टर वाकनिस का केवल एक ही लक्ष्य है कि जो भी बच्चा उनके पास आए, उसकी सर्जरी मुफ्त में हो जाए। ताकि उसके चेहरे पर दोबारा मुस्कान आए और उसकी आगे की जिंदगी बेहतर हो जाए।
पुणे के डॉक्टर वाकनिस पेशे से ओरल सर्जन हैं और मुंह, जबड़े और तालु से जुड़ी विकृतियों की सर्जरी करते हैं। ये नेक काम उन्होंने अपने प्रोफेसर पीटर कैसलर को देखकर शुरू किया। जिन्होंने नीदरलैंड में उन बच्चों की मुफ्त में सर्जरी शुरू की, जिनके होंठ और तालु कटे-फटे रहते थे।
बोलने के अलावा खाने में भी होती है दिक्कत-
कटे-फंटे होठों से परेशान बच्चों की सर्जरी का आइडिया डॉक्टर वाकनिस को तब आया, जब वो साल 2009 में नीदरलैंड में ट्रनिंग कर रहे थे। मगर ट्रेनिंग के दो साल बाद तक अस्पताल नहीं मिलने की वजह से वो ये काम नहीं शुरू कर सके। आखिरकार 2011 में उनकी ये तलाश पूरी हुई, जब उनकी मुलाकात पुणे के ऑर्थोपेडिक सर्जन नीरज अधकर से हुई। जिन्होंने साईंश्री नाम से एक नया अस्पताल खोला था। वो डॉक्टर वाकनिस की सोच से काफी प्रभावित हुए और अपना पूरा अस्पताल इस नेक काम के लिए देने का फैसला कर लिया।
मार्च 2012 में बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौटाने का ये काम शुरू हुआ और डॉक्टर अधकर ने इसको नाम दिया Spreading Smiles।
ऐसे जुड़ते गए दूसरे डॉक्टर्स-
एक डॉक्टर के जुनून से शुरू हुए इस मिशन से धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए। किसी ने अपना अस्पताल दे दिया तो कोई फ्री में एनसथिसिया देने को तैयार हो गया। अस्पताल मिलने के बाद डॉक्टर वाकनिस के सामने दूसरी चुनौती खड़ी की थी कि सर्जरी में कौन साथ देगा। जल्द ही उनकी ये मुश्किल भी दूर हो गई और उन्हें अपने पुराने छात्र का साथ मिला। इसके बाद बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौटाने का नेक काम शुरू हुआ।
बच्चों की मुस्कुराहट ही सच्चा सम्मान: डॉ वाकनिस
इस नेक काम के लिए डॉक्टर वाकनिस को कई सम्मान मिल चुके हैं, मगर उनके लिए सच्चा सम्मान उन बच्चों के चेहरे की मुस्कुराहट है, जिनकी सफल सर्जरी हुई है। इससे जुड़ा एक किस्सा भी है, जब कोंकण से पुणे आई बच्ची श्रिशा दिवेकर की सर्जरी सफल रही और वो Spreading smiles मिशन का चेहरा बन गई।
अब गांवों में इसे पहुंचाने का मिशन-
पुणे के बाद अब डॉक्टर वानकिस इसे दूर-दराज के गांवों में पहुंचाना चाहते हैं, ताकि गांव के बच्चों को सर्जरी के लिए शहर न आना पड़े। हालांकि फंड की कमी की वजह से वो इस काम को गांवों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। वहीं सर्जरी के लिए और आधुनिक उपकरण भी जुटाए जा रहे हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लौटाई जा सके।