देहरादून। गंगोत्री ग्लेशियर में बन रही एक झील केदारनाथ जैसी भीषण आपदा के संकेत दे रही है। गंगा के उद्गम स्थल गोमुख के मुहाने पर बन रही झील ने कभी आशंका के अनुरूप पूरा रूप ले लिया तो इसका आकार केदारनाथ आपदा का कारण बनी चौराबाड़ी ग्लेशियर की झील से करीब चार गुना बड़ा होगा।
हाल ही में गोमुख के दौरे से लौटे वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के आकलन में यह बात निकलकर सामने आई है। खतरे से आगाह करने वाला यह वही वाडिया संस्थान है, जिसने 2004 में केदारनाथ आपदा से पहले भी इसी तरह चेताया था।
इसके भू-विज्ञानियों ने कहा है कि गोमुख में बन रही झील को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी ने बताया कि इसी वर्ष जुलाई में आई बाढ़ के बाद गोमुख में झील का बनना शुरू हुआ है।
बाढ़ के कारण धारा के मुहाने पर करीब 30 मीटर ऊंचे मलबे का ढेर लग जाने से ऐसा हुआ। फिलहाल यहां करीब चार मीटर गहरी झील बन गई है।
जो धारा पहले सीधे बहती थी, वह भी अब दायीं तरफ से बहने लगी है। यदि कभी यह बहाव भी रुक गया तो यहां 30 मीटर ऊंची, 50-60 मीटर लंबी और करीब 150 मीटर चौड़ी झील बन जाएगी।
ऐसे में 30 मीटर ऊंचा मलबे का ढेर, जो बोल्डर, रेत और आइस ब्लॉक से बना है, एक झटके में टूट जाएगा।
चौराबाड़ी झील सिर्फ 7 मीटर गहरी थी
डॉ. नेगी के मुताबिक सावधान हो जाने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है कि इस झील में चौराबाड़ी झील से कहीं अधिक पानी और मलबा जमा करने की क्षमता है। जबकि महज सात मीटर गहरी और 100 मीटर से भी कम चौड़ी चौराबाड़ी झील के फटने से केदारनाथ क्षेत्र में प्रलय की स्थिति आ गई थी।
यह है उपायः नेगी कहते हैं कि उच्च हिमालयी क्षेत्र होने के कारण मलबे के ढेर से छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। किया यही जा सकता है कि ऐहतिहात के तौर पर गोमुख के निचले क्षेत्रों जैसे गंगोत्री आदि में खतरे का आकलन कर सुरक्षा के सभी इंतजाम पुख्ता कर लिए जाएं। तब भी इसी तरह चेताया था केदारनाथ आपदा की चेतावनी वाडिया संस्थान ने नौ साल पहले दे दी थी।
संस्थान ने स्पष्ट तौर पर चेताया था कि चौराबाड़ी ग्लेशियर पर बन रही झील कभी भी भयंकर तबाही मचा सकती है। और तो और, इस बार की तरह तब भी हमारे सहयोगी प्रकाशन दैनिक जागरण ने संस्थान द्वारा दी गई चेतावनी को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। लेकिन प्रशासन ने उसे गंभीरता से नहीं लिया था। सावधानी बरत ली जाती तो अनेक जानें बच सकती थीं।