कोल इंडिया में कामगारों की हड़ताल से कोयला उत्पादन तथा संप्रेषण रहा प्रभावित

asiakhabar.com | July 4, 2020 | 5:22 pm IST
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सिंगरौली। कॉमर्शियल माइनिंग के विरोध में तीन दिवसीय हड़ताल के तीसरे दिन भी कोयला
खदानों में कामगारों की उपस्थिति बहुत कम दर्ज की गई है। कोयला श्रमिकों की हड़ताल की वजह से एनसीएल में
जहां उत्पादन तथा संप्रेषण बुरी तरह से बाधित रहा, वहीं सरकार को हड़ताल के चलते भारी आर्थिक क्षति भी
उठानी पड़ी है। उल्लेखनीय है कि कोल इंडिया मे कामर्शियल माइनिंग तथा निजीकरण के विरोध में श्रमिक संगठनों
के संयुक्त मोर्चा के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय हड़ताल के तीसरे दिन शनिवार को भी कोयला कामगारों
द्वारा काम का बहिष्कार किया गया है तथा कोयला कर्मी अपनी मागों को लेकर अड़े हैं। परिणामस्वरूप जहां
कोयले की मांग व आपूर्ति पर बुरा असर पड़ा है, तो वहीं कंपनी की भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है। यद्यपि
कामगारों की उपस्थिति को लेकर प्रबंधन की ओर से शुक्रवार को आधिकारिक तौर पर किसी भी तरह की जानकारी
नहीं दी जा इई है। परंतु सूत्रों का कहना है कि एनसीएल की सभी परियोनाओं मे शुक्रवार सुबह की पाली में जहाँ
करीब दस से पंद्रह फीसदी ही उपस्थित बताई गई है वहीं दोपहर तथा रात्रि पाली में कामगारों की उपस्थित में
इजाफा हुआ है तथा करीब एक चौथाई कर्मचारी काम पर पहुंचे हैं। उधर श्रमिक संगठनों के नमांग-पत्र पर चर्चा के
दौरान कोयला मंत्री एवं सचिव (कोयला) ने पुनः आश्वस्त किया है कि कोल इंडिया के निजीकरण या कोल इंडिया
से सीएमपीडीआइल के विघटन का कोई प्रश्न ही नहीं है। लिहाजा वर्तमान या भविष्य में रोजगार पर कोई
नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही कोल इंडिया की भूमिका को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत सरकार
कोयला ब्लॉको के आवंटन के माध्यम से सीआईएल की कोयला संसाधन क्षमता को और बढ़ा रही है। अपील के
माध्यम से कोल इंडिया चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने हड़ताल पर अड़े श्रमिक संगठनों से अपील करते हुए कहा है कि
देश में कोविड की वजह से उत्पन्न परिस्थितियों एवं अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्यों को देखते हुए कोल इंडिया की भूमिका
और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। वहीं कोल इंडिया के चेयरमैन तथा एनसीएल के सीएमडी ने पीके सिन्हा ने भी
शुक्रवार को हड़ताल पर डटे कर्मचारियों से काम पर लौटने की अपील की थी, लेकिन कर्मचारियों ने उनकी मांग
नहीं मानी। कामगार कोल इंडिया प्रबंधन की अपील को ठुकराते हुये अपनी मांगों को लेकर अड़े हैं। कुलमिलाकर

सरकार की ओर से तमाम आश्वासनों के बावजूद श्रमिक संगठनों के अड़ियल निर्णय के बाद अब आगामी रणनीति
क्या होगी, फिलहाल देखना दिलचस्प होगा।


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