बहराइच। सीधा सादा उल्लू, धन की देवी लक्ष्मी की सवारी है, मगर दिवाली पर सबसे ज्यादा खतरे में यही जीव पहता है। वजह पर्यावरणीय तो है ही, साथ ही अंधविश्वास के साथ लालच के चक्कर में भी इसकी बलि दी जाती है।
दीपावली के अगले दिन अन्नकूट (जमघट) पर लक्ष्मी जी को खुश करने के लिए तांत्रिक लक्ष्मी जी के वाहन (उल्लू) की बलि चढ़ाते हैं। यौन शक्तिवर्धक दवाएं बनाने में भी इनकी मांग बढ़ी है।
वैसे तो भारत में उल्लू की पांच प्रजातियां और पूरी दुनिया में इनकी 13 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में उल्लू की तीन प्रजातियों की खासी तादाद है। इनमें ग्रेट हानर्ड आउल (घुघ्घू उल्लू), ब्राउन वुड आउल (उल्लू), जंगल आउटलेट (जंगली उल्लू) शामिल हैं। उल्लुओं के रहने के लिए उनके प्राकृतिक परिवेश नष्ट हो रहा है।
यही कारण है कि इसे संरक्षित प्रजाति के पक्षियों में शामिल किया गया है। फिर भी न तो इनकी गणना की जा रही और न ही इनके संरक्षण के उपाय। वन्यजीव विशेषज्ञ भगवानदास लखमानी कहते हैं कि उल्लुओं पर आए संकट का बड़ा कारण उनके रिहायशी प्राकृतिक परिवेश नष्ट होना है।
तांत्रिक बने खतरा-
तांत्रिकों द्वारा हर साल दीपावली पर तंत्र-मंत्र जगाने के लिए उल्लुओं को पकड़ने, अनुष्ठानों के नाम पर उनकी बलि देने जैसे कारणों से भी उल्लुओं के लिए खतरा बना रहता है। जिन तांत्रिक अनुष्ठानों के नाम पर लोग उल्लू पकड़ते हैं उनका कोई वैज्ञानिक अथवा प्रमाणिक आधार नहीं है, फिर भी लोग काला जादू के नाम पर इनकी बलि देने में पीछे नहीं रहते हैं।