बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पति-पत्नी के बीच विवाद के दौरान संतान के संरक्षण संबंधी मामलों में बच्चों की मानसिक स्थिति के आकलन के लिए मनोचिकित्सकों को शामिल करने को लेकर दिशानिर्देश बनाने के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए एक मामले में सुनवाई शुरू की है।
मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी. वराले और न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित की खंड पीठ ने सोमवार को राज्य एवं केंद्र सरकारों को नोटिस जारी किया।
अदालत के निर्देश पर उच्च न्यायालय के महापंजीयक ने जनहित याचिका दायर की थी।
याचिका में कहा गया है कि वैवाहिक विवाद में शामिल माता-पिता नाबालिग बच्चों को यह विश्वास दिलाते हैं और उनके कोमल मन में इस बात को भरते हैं कि माता-पिता में से कोई एक उनकी बेहतर देखभाल करेगा।
याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ मामलों में नाबालिग बच्चों के दादा-दादी भी उन्हें प्रभावित करने के लिए ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करने में शामिल होते हैं, इसलिए बच्चों की मनोदशा का आकलन करने के लिए मनोवैज्ञानिकों की भागीदारी आवश्यक है और संरक्षण के मामलों को निर्धारित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाने चाहिए।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में बच्चा ही सबसे अधिक प्रभावित होता है और इसलिए बाल संरक्षण विवादों में मनोवैज्ञानिकों की उपलब्धता की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘बच्चे के संरक्षण से जुड़े मामलों को न केवल कानूनी और तकनीकी पहलू से बल्कि इसके मनोवैज्ञानिक पहलू से भी देखने की जरूरत है।’’
जनहित याचिका में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता ध्यान चिन्नप्पा को न्याय मित्र नियुक्त किया गया, जबकि अधिवक्ता बी जी तारा को उनकी सहायता के लिए नियुक्त किया गया।
राज्य और केंद्र सरकारों को अपना-अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।