नोएडा। नोएडा में वर्ष 2008 में हुए चर्चित आरुषि और हेमराज हत्याकांड में आजीवन कारावास काट रहे आरुषि के माता-पिता राजेश तलवार और नुपुर तलवार की अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट आज अपना अहम फैसला सुना सकता है। सीबीआई कोर्ट के फैसले से जुड़े तथ्यों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विरोधाभास पाया था। इसलिए इस मामले में हाईकोर्ट दोबारा सुनवाई को राजी हुआ। हाईकोर्ट के साथ अविरुक सेन ने ‘आरुषि’ नाम की किताब में जो सीबीआई के जांच पर सवाल उठाए थे। आखिर क्या थे वो सवाल, जो आज भी जांच एजेंसी के लिए यक्ष प्रश्न की तरह सामने खड़े हैं।
1- हैदराबाद की सेंटर फ़ॉर डीएनए फ़िंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नॉस्टिक लैब की रिपोर्ट में कहा गया था कि हेमराज का खून तलवार दंपति के घर से कुछ दूर स्थित कृष्णा के बिस्तर पर मिला, लेकिन जांचकर्ताओं ने इसका संज्ञान नहीं लिया। घटनास्थल की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ हुई।
2- अगर रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा गया होता तो तलवार दंपति के उस कथन को मज़बूती मिलती कि घर में कोई बाहरी व्यक्ति दाखिल हुआ। सीबीआई के एक अफ़सर धनकर ने 2008 में प्रयोगशाला को पत्र लिखकर कहा कि हेमराज का तकिया और उसका खोल, जिस पर खून लगा था, वो आरुषि के कमरे से मिले थे।
उधर, सीबीआई ने इसके उलट सुप्रीम कोर्ट के सामने, इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने, अपनी क्लोज़र रिपोर्ट में भी ये कहा कि ये सामान हेमराज के कमरे से मिला। सीबीआई अफ़सर की चिट्ठी से उस कहानी को बल मिला कि हेमराज अपने बिस्तर और तकिए के साथ आरुषि के कमरे में मौजूद थे, आरुषि ने उन्हें अपने कमरे में आने दिया। इससे तलवार दंपति की उस दलील को धक्का लगा कि आरुषि की हत्या में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ था और ऑनर किलिंग की दलील को मज़बूती मिली।
3- सीबीआई का कहना था कि आरुषि की हत्या राजेश तलवार ने एक गॉल्फ़ स्टिक से की जिसे कथित तौर पर बाद में अच्छे से साफ़ किया गया, लेकिन मुकदमे में अभियोजन पक्ष ने एक दूसरी गोल्फ़ स्टिक को पेश किया। सरकारी वकील की ओर से दलील दी गई कि आरुषि का गला स्कैल्पल या डेंटिस्ट द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली छुरी से काटा गया।
सीबीआई ने कभी भी तलवार दंपति के यहां से ऐसे स्कैल्पल को बरामद नहीं किया. साथ ही किसी भी स्कैल्पल को फ़ॉरेंसिक प्रयोगशाला में नहीं भेजा गया। इस बात की फ़ॉरेंसिक जांच की कोशिश भी नहीं की गई कि स्कैल्पल से हत्या की भी जा सकती है या नहीं। सीबीआई अदालत में जांच अधिकारी की बात को प्रमुखता दी गई जिसे फ़ॉरेंसिक जांच के बारे में नहीं पता था।
4- तलवार दंपति से संपर्क के लिए, उन्हें दफ़्तर बुलाने के लिए, जानकारी हासिल करने के लिए सीबीआई द्वारा hemraj.jalvayuvihar@gmail.com आईडी का इस्तेमाल करना केस को लेकर शुरुआत से ही अफ़सरों की सोच पर सवाल खड़े करता है। इस ईमेल आईडी पर सीबीआई के बड़े अफ़सरों को भी कॉपी किया जाता था। सीबीआई अफ़सरों ने सरकारी ईमेल आईडी के इस्तेमाल की बजाए हेमराज के नाम वाले ईमेल का इस्तेमाल क्यों किया?
5- तलवार दंपति के घर में काम करने वाली भारती मंडल का बयान भी कई सवाल खड़े करता है। दस्तावेज़ों के मुताबिक़, भारती ने अदालत में कहा कि उन्हें जो समझाया गया वो वही बयान दे रही हैं। अदालत में उलझा देने वाले सवालों के बीच भारती मंडल से पूछा गया कि क्या भारती ने तलवार दंपति के घर के बाहरी दरवाज़े को खोलने की कोशिश की थी ?
भारती मंडल ने कहा कि हाँ उन्होंने दरवाज़े को छुआ था। अदालत में इसका मतलब निकाला गया कि भारती ने दरवाज़े को बाहर से खोलने की कोशिश की थी, क्योंकि दरवाज़ा अंदर से बंद था। अगर दरवाज़ा अंदर से बंद था तो बाहर से कोई नहीं आया और घर में तलवार दंपति के अलावा कोई नहीं था। भारती ने कहा, उन्होंने घंटी बजाई और दरवाज़ा खुलने का इंतज़ार किया और उन्होंने न ही दरवाज़ा छुआ या उसे खोलने की कोशिश की क्योंकि आप ऐसे ही किसी की घर में नहीं घुसते।
6- अगर आरुषि ने दरवाज़ा नहीं खोला तो क्या आरुषि के कमरे में मुख्य दरवाज़े के अलावा किसी और दरवाज़े से भी दाखिल हुआ जा सकता था ? आरुषि के कमरे में दाखिल होने का एक और रास्ता हो सकता था जिस पर जांचकर्ताओं को ध्यान देना चाहिए था। आरुषि के कमरे से पहले एक गेस्ट टॉयलेट पड़ता है जो कि आरुषि के टॉयलेट की ओर खुलता था, दोनों टॉयलेट के बीच में एक दरवाज़ा था जिसे गेस्ट टॉयलेट की ओर से खोला जा सकता था।
7- सीबीआई ने उन गवाहों को पेश नहीं किया जिनकी गवाही तलवार दंपति के पक्ष को मज़बूत कर सकती थी। सीबीआई ने 141 गवाहों की सूची बनाई, लेकिन मात्र 39 गवाहों को अदालत में पेश किया गया।