तनिष्क गुप्ता
साइना के तो मजे हैं। कितने आलीशान घर में रहती है। मेरे पास तो ऐसा घर नहीं है। शाहीन ने मां से
कहा। वह जब भी किसी बढ़िया चीज को देखती, तो स्वयं से तुलना करने लगती। उसकी इस आदत से
मां बहुत परेशान रहती थी। एक दिन मां ने शाहीन को समझाते हुए कहा, हमारे पास जो भी है, उसी में
हमें खुश रहना चाहिए न कि दूसरों की महंगी या सुंदर चीजों को देखकर परेशान होना चाहिए।
तुलना करनी हो, तो बुद्धि से करो। मन से करो। कोई पढ़ाई में अधिक तेज और व्यवहार-कुशल हो, तो
खुद को वैसा बनाने की कोशिश करो। फिर धन-दौलत खुद ही आ जाएंगे। मगर मां की बातों का शाहीन
पर कोई असर नहीं हुआ। देखते-देखते उसके एग्जाम के दिन पास आ गए। वह अच्छी तरह परीक्षा की
तैयारी नहीं कर पाई, नतीजा यह हुआ कि वह एग्जाम में फेल हो गई, जबकि साइना प्रथम श्रेणी से
उत्तीर्ण हुई। अगले दिन अखबार में जब उसने माला के बारे में पढ़ा, तो उसे बेहद आश्चर्य हुआ। माला
उसकी क्लास की छात्रा थी, जो गरीब और विकलांग थी। वह परीक्षा में जिला टॉपर घोषित हुई थी। उसने
अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को दिया था। उसने कहा था कि मेरी मां कहती है, ऊपरवाले ने तुम्हें
यदि एक पैर नहीं दिया, तो क्या हुआ! उनके बारे में सोचो, जिनके दोनों पैर नहीं होते, वे कैसे जीते
होंगे। हम मेहनत के बलबूते पर दुनिया की हर चीज पा सकते हैं।
शाहीन सोचने लगी कि उसकी मां भी तो हमेशा यही कहती हैं, मगर उसने उनकी बातों पर कहां ध्यान
दिया। ऐसा कर उसने बहुत बड़ी भूल की है। वह तुरंत उठी और मां से जाकर माफी मांग ली। अब उसने
यह प्रतिज्ञा की कि वह अब खूब मन लगाकर पढ़ेगी। उसकी मेहनत रंग लाई। इस बार वह बहुत बढ़िया
अंकों से पास हुई। वह और भी ज्यादा मेहनत करने लगी, क्योंकि उसे न सिर्फ अच्छी सी नौकरी पानी
थी, बल्कि गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित भी करना
था।