बच्चों के खानपान व पोषण को लेकर माता-पिता के मन में कई प्रकार के भ्रम रहते हैं। यही कारण है कि विकसित देशों की तुलना में हमारे देश के बच्चे प्रारंभ में तो हृष्ट-पुष्ट लगते हैं, पर बढ़ती उम्र के साथ उनका शारीरिक विकास व कद-काठी कम रह जाती है। कुछ भ्रमों को दूर करके हम अपने बच्चों की सेहत बेहतर कर सकते हैं…
सभी बच्चों को अधिक से अधिक दूध आहार में दें, जिससे बच्चे के शरीर में ताकत बनी रहे।
हम सभी के घरों में सालों से चली आ रही यह सोच वास्तव में गलत है। छह माह की उम्र के बाद बच्चों के शारीरिक विकास के लिए जरूरी पोषक तत्व केवल दूध पूरा नहीं कर सकता। इसलिए बढ़ती उम्र के साथ दूध की मात्रा कम और अनाज की मात्रा बढ़ाना आवश्यक है। साथ ही फल, हरी सब्जियां, दाल, घी आदि भी उपयुक्त मात्रा में होना चाहिए।
बच्चे को चार माह की उम्र में ठोस आहार शुरू करने से उसका स्वास्थ्य बेहतर होगा।
यह धारणा बिल्कुल गलत है। छह माह से पहले न तो शिशु को दूध के अलावा अन्य आहार की कोई जरूरत है और न ही उसे पचाने की क्षमता। जिन बच्चों में ठोस आहार छह माह से पहले शुरू किया जाता है, उनमें भविष्य में मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज व हार्ट प्राब्लम आदि अधिक होती है। इसलिए डब्लूएचओ द्वारा विश्व के सभी बच्चों के लिए ठोस आहार की शुरूआत का उपयुक्त समय छह माह ही है।
शिशु को ऊपर का दूध देने से पेट भरा रहता है और वह चैन की नींद सोता है।
शिशु के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम है, ऊपरी दूध देने से बच्चे के लिए उसे सही तरह से पचा पाना मुश्किल होगा। दूध की बोतल से उसे डायरिया आदि संक्रमण होंगे जिसकी वजह से उसका वजन भी नहीं बढ़ेगा।
बच्चे के विकास के लिए गाय का दूध अच्छा है। डिब्बे वाला दूध का पाउडर भी बेहतर विकल्प है।
गााय का दूध अत्यधिक पतला होता है और इसके निरंतर सेवन से शिशु में आयरन, कैल्शियम आदि की कमी हो जाती है। ऊपरी दूध पर पले बच्चों में मिल्क एलर्जी की परेशानी भी अधिक होती है। साथ ही, स्तनपान पर पले बच्चों का मानसिक विकास ऊपरी दूध पर पले बच्चों से बेहतर होता है।
बच्चों को नौ-दस महीने तक मुख्यतः स्तनपान कराने से बच्चा हृष्ट-पुष्ट रहेगा।
बच्चों को छह माह की उम्र के बाद स्तनपान के अलावा ठोस आहार शुरू कर देना चाहिए। बॉस्टन यूनिवर्सिटी में हुए आधुनिक शोधों द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि छह-सात महीने की उम्र ही एक क्रिटिकल पीरियड्य है जिसमें ठोस आहार देना उचित है। इसके बाद ठोस आहार शुरू करने पर बच्चे इसमें रुचि नहीं दिखाते। जैसे-जैसे इन्हें शुरू करने की उम्र बढ़ती जाएगी, उनकी रुचि उतनी ही घटती जाएगी।
बच्चों को बेरोकटोक सब कुछ खाने देना चाहिए। बच्चे तो गोल-मटोल ही सुंदर लगते हैं।
इस विषय में हमें जागरूक होने की आवश्यकता है। आज के दौर में कुपोषण से बड़ी समस्या मोटापे की हो रही है। इसलिए शुरू से ही बच्चों में घर के खाने की ही रुचि बनाएं। चिप्स, चॉकलेट, कोल्ट ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक्स, पिज्जा, चाउमीन आदि जंक फूड्स से परहेज करें। इनकी जगह बच्चों को फल, ताजा जूस, अंकुरित चने, लईया आदि खिलाएं। साथ ही बच्चों में खाली समय में टीवी की जगह खेल-कूद व व्यायाम करने की आदत डालें।
शिशु को स्तनपान कराने वाली मां को गर्म तासीर वाली वस्तुएं, हल्दी, चावल आदि नहीं खाना चाहिए, सिर्फ कुछ हल्की और आसानी से पचने वाली वस्तुएं ही खानी चाहिए।
इस तथ्य में कोई सच्चाई नहीं है, इसके विपरीत स्तनपान के समय मां को सामान्य से लगभग 300-500 कैलोरीज अधिक दी जा सकती है। माताओं को फैट, प्रोटीन, शुगर, विटामिंस, मिनरल्स आदि से परिपूर्ण बैलेंस्ड डाइट लेनी चाहिए व डेढ़-दो लीटर पानी, दूध आदि लेते रहना चाहिए। ध्यान रहे, माताओं का संपूर्ण पोषण ही बच्चे की जरूरतों को पूरा करेगा। इससे ही बच्चे के विकास की सही नींव पड़ेगी।
दांत आने की वजह से बच्चे खाना छोड़ देते हैं व उनका विकास भी कम होने लगता है।
दांत आने की वजह से वे कुछ चिड़चिड़े हो जाते हैं, पर एक वर्ष के आसपास बच्चे की खाने के प्रति रुचि स्वतः ही पहले की तुलना में घट जाती है। इसका दांत आने से कोई संबंध नहीं है व इसका बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए परेशान न हों व खाना खिलाने की जबरदस्ती न करें। इसकी जगह खाने को रंग-बिरंगा और अटै्रक्टिव बनाएं। बच्चे को खेल-खेल में खाना खिलाएं, जो कि उसके लिए एक सुखद अहसास रहे न कि एक सजा। बच्चे में सदैव उसे अपने हाथ से खाने की आदत डालें।