लवण्या गुप्ता
कक्षा में एक नया प्रवेश हुआ… पूर्णसिंह। उसकी विकृत चाल देखकर बच्चे हंसने लगे। किसी ने कहा लंगड़ूद्दीन,
किसी ने तेमूरलंग तो किसी ने कह दिया- वाह नाम है पूर्णसिंह और है बेचारा अपूर्ण। मतलब यह कि अध्यापक के
आने से पहले तक उपस्थित विद्यार्थियों ने उसको परेशान करने में किसी प्रकार की कमी नहीं बरती।
कक्षाध्यापक ने भी अपना कर्तव्य निभाते हुए उस विद्यार्थी से परिचय कराते हुए सहानुभूति रखने की अपील कर
दी। वे बोले- देखो बच्चों, पूरन हमारी कक्षा का नया विद्यार्थी है। वह आप लोगों की तरह सामान्य नहीं है, उसे
चिढ़ाना मत बल्कि यथासंभव सहायता करना।
हाय बेचारा- पास बैठे नटखट विराट ने व्यंग्य कर दिया।
पूरन को अच्छा नहीं लगा। वह तपाक से बोल पड़ा- न मैं बेचारा हूं और न किसी की दया के अधीन। मैं सिर्फ एक
पैर से विकलांग हूं, मानसिक रूप से विकलांग कदापि नहीं। विकलांगता मेरे काम में आड़े नहीं आती और अपने
सारे काम मैं खुद ही कर सकता हूं।
कक्षाध्यापक ने संभलते हुए कहा- बुरा मत मानो बेटे, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था। फिर शायद उसका दिल रखने
के लिए यह कह दिया। वस्तुतः हम सब विकलांग हैं। आज की दुनिया विकलांग की दुनिया है। कक्षा के एक
विद्यार्थी स्पर्श को यह आरोप पचा नहीं। उसने खड़े होते हुए अपनी आपत्ति दर्ज कराई। क्षमा कीजिए आचार्यजी!
जब हमारे सभी अंग सुरक्षित हैं तो हम विकलांग कैसे हो गए?