महाराजा कृष्णदेव राय ने एक बार तेनालीराम की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने तेनालीराम को एक बकरी दी और
कहा, तेनालीराम इस बकरी को अपने घर ले जाओ। इसे आज से पहले से दोगुना चारा खिलाना। मैं एक महीने
बाद वजन करूंगा। अगर इसके वजन में जरा भी कमी या बढ़ोतरी हुई तो भारी सजा के लिए तैयार रहना।
तेनालीराम ने शर्त मान ली और खुशी-खुशी बकरी लेकर अपने घर चले गए। राजा अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे कि
इस बार तो तेनालीराम फंस ही गए। अबकी बार उनकी हार तय है। बकरी का वजन बढ़ेगा ही बढ़ेगा। महाराज ने
दिन भर बकरी पर निगाह रखने के लिए एक कारिंदा भी तय कर दिया, जो दिन भर बकरी पर निगाह रखता है
और रात को अपने घर चला जाता था।
एक महीना बीत गया। महाराज ने बकरी समेत तेनालीराम को दरबार में बुलाया और सबके सामने उसका वजन
कराया। बकरी का वजन न बढ़ा था, न घटा। महाराज हैरान। उन्होंने तेनालीराम से अनुरोध किया करके पूछा कि
तुमने ऐसी क्या तरकीब लड़ाई, जो बकरी का वजन ज्यों का त्यों बना रहा?
तेनालीराम ने कहा, महाराज, मैं बकरी को दिन में भरपूर खाना खिलाने के बाद रात में एक कसाई को बड़ी-सी
खुखरी (चाकू) लेकर उसके सामने बिठा देता था। डर के मारे बकरी का खाया-पिया बिना पचे ही बाहर निकल जाता
था। बस इसका वजन न कम हुआ, न ही बढ़ा। तेनालीराम के दिमाग की एक बार फिर महाराज समेत सभी ने
दाद दी।