मोनी चौहान
एक संत ने एक द्वार पर दस्तक दी और आवाज लगाई भिक्षां देहि एक छोटी बच्ची बाहर आई और
बोली, बाबा, हम तो बहुत ही गरीब हैं, हमारे पास देने को कुछ नहीं है। संत बोले, बेटी, संत को मना
मत कर, कुछ नहीं तो अपने आंगन की धूल ही दे दे। उस लड़की ने एक मुट्ठी धूल उठाई और उन संत
महात्मा के भिक्षा पात्र में डाल दी। उनके शिष्य ने पूछा, गुरु जी, धूल भी कोई भिक्षा है? आपने उस
लड़की से धूल देने को क्यों कहा?
संत बोले, बेटे, अगर वह आज कुछ ना देती तो फिर कभी नहीं दे पाती। आज धूल दी हे तो क्या हुआ,
उसमे देने का संस्कार तो पड़ गया। आज धूल दी है, उसमें देने की भावना तो जागी, जब कल वह
सामर्थवान होगी तो फल-फूल, धन-धान्य इत्यादि भी देगी।
यह जितनी छोटी कथा है निहितार्थ उतना ही विशाल है, साथ में आग्रह भी, इसलिए दान करते समय
दान हमेशा अपने परिवार के छोटे बच्चों के हाथों से दिलवाये। जिससे उनमें देने की भावना बचपन से
बनेगी और जब उनमे कुछ देने की भावना बनेगी तो उनकी विचार धारा भी अच्छी बनेगी और जब
विचारधारा अच्छी बनेगी तो वो स्वयं एक जिम्मेदार नागरिक बनेंगे।