-उपासना बेहार-
एक शहर में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम आमिर और दूसरे का नाम श्याम था। आमिर की बिजली के सामान की दुकान थी तो वहीं श्याम की कपड़े की दुकान थी। दोनों की दुकानें अच्छी चल रही थीं।
आमिर ने एक नियम बना रखा था कि वे दुकान से होने वाली हर माह की कमाई में से एक चैथाई राशि नियमित बचत खाते में डालता था और बाकि पैसे घर खर्च के लिए रखता था। वो बिलकुल फिजूलखर्ची नहीं था। उसका जोर हमेशा बचत करने की होती थी। वह बचत के पैसे को कभी खर्च नहीं करता था। आमिर का रहन सहन सामान्य था। उसका घर बहुत आलिशान नहीं था लेकिन आवश्यकता की हर समान घर में मौजुद थी।
वहीं उसका दोस्त श्याम को फिजूलखर्ची की आदत थी। वह फालतू खर्च बहुत करता था। उसका घर गैर जरुरी चीजों से भरा पड़ा था। हर माह वह कुछ न कुछ महंगी और अनावश्यक चीजें खरीद लाता। उसके पास कई सारी गाडियां थीं।
आमिर उसे बार बार समझाता था दोस्त फिजूल खर्च मत करो, कुछ पैसों को बुरे वक्त के लिए भी संभाल कर रखा करो, बुरा वक्त कह कर नहीं आता है।
श्याम आमिर की सलाह मानने के बदले उसकी खिल्ली उड़ाता आमिर भाई मैं तुम्हारी तरह कंजूस नहीं हूं, मैं तो अपने परिवार को सारी खुशियां देना चाहता हूं, मेरे बच्चे जिस चीज पर हाथ रख देते हैं, मैं उस चीज को फिर वह चाहे कितनी ही महंगी क्यों न हो, दिलवा देता हूं। मैं उनकी इच्छा का गला नहीं घोट सकता हूं।
पर श्याम इससे तो बच्चे बिगड़ जायेगें।
ऐसा नहीं होगा मेरे बच्चे दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हैं। अच्छा आमिर एक बात मैं पूछना चाहता हूं, तुम इतने कंजूस क्यों हो? देखो हम दोनो लगभग एक सा कमाते हैं लेकिन तुम्हारा घर देखो मेरे घर से कितना छोटा है। हमारा रहन सहन देखो, मेरे पत्नि और बच्चों के कपड़े, खिलौने देखा, जमीन आसमान का फर्क दिखता है। दोस्त ऐसी भी क्या कंजूसी कि परिवार वाले ठीक से जीवन का मजा ही न ले सकें।
श्याम तुम गलत सोच रहे हो, मैं कंजूस नहीं हूं, बल्कि मितव्ययी हूं। मेरे घर में सभी आवश्यक वस्तुऐं हैं। बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं। मेरे परिवार के लोग और कर्मचारी खुश हैं। ओर क्या चाहिए परन्तु श्याम हमेशा आमिर को महाकंजूस कह कर उसकी खिल्ली उड़ाता था। आमिर इस बात को हंस कर टाल देता था। आमिर ने अपना नियम नहीं तोड़ा और लगातार बचत जारी रखी।
समय यूं ही गुजरता गया। एक रात श्याम के कपड़े की दुकान में बिजली के शार्टसर्किट के कारण आग लग गई। आग इतनी भंयानक थी कि कुछ ही समय में सारे कपड़े घू-घू करके जल गये। दुकान में आग लगा देख कर आसपास के लोगों ने श्याम को खबर की, जब तक श्याम दुकान पहुंचा वहां कपड़ों के राख के अलावा कुछ नहीं बचा था। यह देख कर श्याम को चक्कर आ गया, लोगों ने पकड़ कर किसी तरह से उसे संभाला और एक तरफ बैठाया, श्याम की आंखों से लगातार आसूं बहे जा रहे थे। वह अपना सर पकड़ कर बैठ गया उसे बहुत सदमा लगा था, तभी आमिर भी उसके दुकान पहॅुचा, उसे देखते ही श्याम दौड़ कर उससे गले लग गया
दोस्त मैं तो बरबाद हो गया, लाखों का सामान जल कर खाक हो गया। अब क्या होगा, मैं क्या करुंगा?
तुम परेशान क्यों होते हो, तुम अपने को अकेला मत समझो, हम सब हैं ना तुम्हारे साथ।
श्याम बहुत परेशान था, उसने अपनी पत्नि से कहा कि अब हम घर का खर्च कैसे चलायेगें और नये व्यापार के लिए कहां से पैसा आयेगा। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि आगे सब कैसे होगा। आज मुझे आमिर भाई की सलाह बहुत याद आ रही है। वो मुझे हमेशा बचत करने को कहते रहे। मैंने कभी उनकी बात नहीं सुनी। फालतू के दिखावे के चक्कर में अपना पूरा पैसा खर्च कर दिया और बचत नहीं की। अगर बचत की होती तो आज यह दिन नहीं देखने पड़ते। हमें यह घर बेचना पड़ेगा। मैंने बहुत भारी गलती की। आमिर भाई बार बार कहते रहे कि बचत करो, विपत्ति के समय यही काम आयेगा। लेकिन मैं हमेशा उनकी खिल्ली उड़ाता रहा, उन्हें महाकंजूस कहता था, वो कंजूस नहीं थे, समझदार थे। यह कहते कहते श्याम के आंखों से आंसू बहने लगे।
जब आमिर ने यह सुना है कि श्याम को पैसों की दिक्कत है और इसी कारण उसे अपना घर बेचना पड़ रहा है तो वह तुरंत उसके घर गया
श्याम तुम यह घर क्यों बेच रहे हो तुमने इसे कितने मन से बनवाया था।
क्या करुं आमिर मेरे पास बिलकुल भी पैसा नहीं है। मैं कैसे अपने परिवार का पेट भरुंगा और बिना पैसे के कैसे नया कारोबार करुंगा, मुझे माफ कर दो दोस्त तुम सही थे अगर मैंने बचत की होती तो यह स्थिति नहीं आती और घर बेचना नहीं पड़ता।
श्याम बुरे वक्त में दोस्त ही दोस्त के काम आता है। तुम्हें घर बेचने की कोई जरुरत नहीं है। मेरे पास कुछ पैसे हैं, यह पैसे बुरे समय के लिए ही मैंने जमा कर रखे थे। इन पैसे से तुम नया व्यापार शुरु करो और घर की देखभाल करो, तब तुम्हारे पास पैसे आ जाये तो मुझे वापस कर देना।
यह सुन कर श्याम बहुत खुश हुआ और आमिर को गले से लगा लिया दोस्त आज मुझे बचत का महत्व समझ आया और अब से मैं भी बचत किया करुंगा।