किसी जंगल में रह कर एक संन्यासी तपस्या करता था। जंगल के जानवर उस संन्यासी के पास प्रवचन सुनने आया करते थे। वे संन्यासी को चारों ओर से घेर लेते और वह जानवरों को अच्छा जीवन बिताने का उपदेश देता।
उसी जंगल में एक छोटा-सा चूहा भी रहता था। वह भी रोज संन्यासी का प्रवचन सुनने आता था।
एक दिन वह जंगल में यहां-वहां भटकता साधु को भेंट देने के लिए कुछ ढूंढ़ रहा था कि एक बड़ी बिल्ली ने उस पर हमला बोल दिया। वह बिल्ली झाडियों में छिप कर चूहे पर निगाह रखे थी।
चूहा बेहद डर गया और भाग निकला सीधे संन्यासी के आश्रम की ओर।
वहां जाकर चूहा संन्यासी के पैरों में पड़ गया और डरी आवाज में उसे अपनी आपबीती कह सुनाई।
इसी बीच बिल्ली भी वहां आ पहुंची। उसने संन्यासी से आग्रह किया कि उसे उसका शिकार ले जाने दे।
संन्यासी बेचारा धर्मसंकट में पड़ गया। उसने एक क्षण सोचा और फिर अपनी दिव्य शक्ति से चूहे को एक बड़ी बिल्ली में बदल दिया।
अपने से बड़ी बिल्ली को सामने देख पहली बिल्ली वहां से भाग निकली।
अब चूहा चिंतामुक्त था। वह अब किसी दूसरी बड़ी बिल्ली की भांति जंगल में विचरण करता। दूसरे जानवरों को डराने के लिए वह जोर से गुर्राना भी सीख गया था। बिल्लियों से बदला लेने के लिए वह उनसे भिड़ जाता। बहुत-सी बिल्लियां उसने मार डाली थीं।
लेकिन चूहे का यह चिंतामुक्त जीवन लंबा नहीं चला।
एक दिन एक लोमड़ी ने उस पर झपट्टा मारा। अब एक नई समस्या उठ खड़ी हुई। उसने यह तो कभी सोचा ही नहीं था कि बिल्ली से बड़े और हिंसक जानवर भी जंगल में मौजूद हैं, जो पलभर में उसे चीर-फाड़ सकते हैं।
वह फिर अपनी जान बचाने के लिए दौड़ा। किसी तरह लोमड़ी से बच कर वह फिर संन्यासी के आश्रम में जा पहुंचा। लोमड़ी भी उसका पीछा करते हुए वहां पहुंच चुकी थी। अब दोनों संन्यासी के सामने खड़े थे।
संन्यासी ने चूहे की परेशानी देख उसे बड़ी-सी लोमड़ी में बदल दिया। अब अपने से बड़ी लोमड़ी सामने देख पहली लोमड़ी वहां से भाग निकली।
बड़ी लोमड़ी का आकार पाकर चूहा फिर चिंतामुक्त हो गया और जंगल में घूमने लगा। लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा नहीं टिक पाई।
एक दिन जब वह यूं ही जंगल में घूम रहा था कि एक शेर उस पर झपट पड़ा। किसी तरह चूहे ने अपनी जान बचाई और पहले की तरह भाग निकला सीधा संन्यासी के आश्रम की ओर।
संन्यासी को फिर चूहे पर दया आ गयी और उसने उसे शेर के रूप में बदल दिया।
संन्यासी यह सब करते समय यह सोचता था कि चूहा उसका पुराना शिष्य है-छोटा सा जीव है। हिंसक जानवरों से उसकी रक्षा करना उसका कर्तव्य है।
शेर का रूप लेकर चूहा जंगल में बिना किसी डर के घूमने लगा। बिना किसी वजह ही उसने जंगल के बहुत से जानवरों को मार डाला। शेर का रूप पाने के बाद चूहा जंगल का सबसे शक्तिशाली जीव बन गया था। वह राजा की तरह बर्ताव करता और वैसे ही आदेश देता जैसे कोई राजा देता है।
अब उसे एक ही चिंता दिन-रात लगी रहती और वह चिंता थी संन्यासी कि दिव्य शक्तियों को लेकर।
वह सोचता था कि तब क्या होगा, जब संन्यासी कारण या अकारण उसे पहले जैसे चूहे के रूप में बदल देगा। वह जितना सोचता, चिंता उतनी ही बढ़ती जाती।
आखिरकार एक दिन वह संन्यासी के पास आकर जोर से दहाड़ा और बोला, मैं भूखा हूं, अब मैं तुम्हें खाऊंगा ताकि वे सभी दिव्य शक्तियां मुझमें समा जाएं, जो अभी तुम्हारे पास हैं। मुझे आज्ञा दें कि आपको मार सकूं।
संन्यासी कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उसके साथ ऐसा हो सकता है। जिस चूहे का रूप बदल कर वह उसकी जान की रक्षा कर रहा है, वही एक दिन उसकी जान का प्यासा हो जाएगा।
चूहे के ये शब्द सुन कर संन्यासी को बहुत गुस्सा आया और उसने तुरन्त ही उसे फिर से चूहा बना दिया।
अब चूहे को अपनी गलती का अनुभव हुआ। उसने अपने बुरे बर्ताव के लिए संन्यासी से क्षमा मांगते हुए उसे फिर से शेर बना देने को कहा, लेकिन संन्यासी ने उसे लाठी से पीट कर वहां से भगा दिया।