किताबें हमारी सच्ची मित्र

asiakhabar.com | March 16, 2021 | 6:00 pm IST
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लवण्या गुप्ता

सिद्धार्थ एक बहुत ही होनहार और आज्ञाकारी बालक था, परन्तु उसकी बोली में हकलाहट थी जिसके
कारण स्कूल में व घर के आसपास बच्चे उसका मजाक बनाते। सिद्धार्थ को अपने बराबर के बच्चों के
साथ खेलने का खूब मन करता पर हर बार जब भी वह उनके पास जाता सिर्फ मजा़क बनकर लौटता
उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था। कोई हंसी न उड़ाए इस डर से उसने बोलना भी कम कर दिया था।
अब वह अपने मित्रों के पास भी कम जाता था।
एक दिन वह ऐसे ही गुमसुम सा घर में बैठा था, उसके माता-पिता को उसका इस तरह चुप-चुप रहना
समझ नहीं आ रहा था वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा अपनी इस कमी के कारण किसी भी तरह से
खुद को दूसरों से कम आंके, इसलिए वे उसे इस बात का अहसास तक नहीं होने देते थे कि उसमें कोई
कमी है। वे अपने बच्चे की योग्यता से अच्छी तरह परिचित थे, इसलिए हमेशा उससे सामान्य बात करने
की कोशिश करते रहते।
पर, जब सभी कोशिशों के बावजूद उन्होंने पाया कि सिद्धार्थ को इस बात का अहसास हो गया है कि
वह सामान्य बच्चों जैसा नहीं है, उसकी बोली में हकलाहट है, तो उन्हें रात भर नींद नहीं आई।

आज रविवार था सिद्धार्थ अपने पिताजी के साथ बैठकर मैग्ज़ीन पढ़ रहा था। मैग्ज़ीन इतनी रोचक थी
कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब चार घंटे बीत गए। सिद्धार्थ बोला-‘‘डैडी! आज टो पटा ही नहीं चला
इटना समय कहां निकल गया।’’ पिताजी ने समझाया-‘‘हां, बेटे! यदि हम मन लगाकर पढंे़ तो किताबें
हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं। इनसे ही हमें सारी दुनिया की जानकारी ज्ञान, भरोसा, विश्वास, प्रेरणा,
सच्चाई और प्रोत्साहन सब कुछ मिलता है।’’ सिद्धार्थ अपने पिताजी की एक-एक बात बहुत ध्यान से
सुन रहा था, उसे लगा कि उसे अपना सच्चा मित्र मिल गया है। उसने किताबों के साथ अपना समय
बिताना शुरू कर दिया इससे न सिर्फ उसकी पढ़ाई के प्रति लगन बढ़ी बल्कि वह स्कूल में हर
काॅम्पटीशन में प्रथम आने लगा। क्लास में टीचर्स उसकी तारीफ करते न थकते। धीरे-धीरे वे सभी साथी
जो उसका मजाक बनाते थे अपनी कठिनाइयां सुलझाने उसके पास आने लगे।
एक दिन सिद्धार्थ लायब्रेरी में कोई किताब खोज रहा था तो उसे एक ऐसी किताब हाथ लगी जिसमें
हकलाने वाले बच्चों की समस्याएं और उसे ठीक करने के उपाय के बारे में लिखा था। सिद्धार्थ वह
किताब लायबे्ररी से निकलवाकर घर ले आया। किताब में लिखा था कि लाड़ प्यार में माता-पिता, दादा-
दादी या बड़े भाई बहिन बच्चों से तुतलाकर बात करते हैं और बच्चे भी वैसा ही सीख जाते हैं, फिर धीरे-
धीरे यह आदत बन जाती है और बच्चे की जीभ वैसा ही बोलने की आदी हो जाती है। इस समस्या के
हल के लिए उस किताब में तकरीबन 100 से 150 ऐसे वाक्य थे जिन्हें पहले धीरे-धीरे और बाद में
जल्दी-जल्दी कई बार उच्चारित करने से हकलाने की समस्या दूर की जा सकती थी। सिद्धार्थ ने जल्दी
ही उस किताब के सारे वाक्य ठीक-ठीक उच्चारित करना शुरू कर दिया। और कुछ ही दिनों में वह
जल्दी-जल्दी सब कुछ सही-सही पढ़ने लगा। धीरे-धीरे उसकी हकलाहट कम, फिर बहुत कम और अन्त में
समाप्त हो गई।
वह बहुत खुश था अब वह सामान्य के साथ-साथ विद्वान बालक भी था। उसने मन ही मन किताबों को
धन्यवाद दिया और अपना बाकी समय और अधिक और अधिक किताबों में लगाना शुरू कर दिया।


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