कार्तिक गुप्ता
अब तो जयपुर का ही हो गया। गाँव में बारहवीं की परीक्षा देकर इधर आ गया। पास हुआ। राजस्थान
विश्वविद्यालय से बी.ए. कर रहा था। इच्छा थी अफसर बनूँगा पर नहीं बन सका। तब पिताजी ठीक
ठाक कमा लिया करते थे। फैक्ट्री में काम करते थे। हम दो भाई बहन थे। पर अचानक ही एक दिन
खबर आई कि मशीन में पिताजी का हाथ कट गया। फिर तो घर की स्थिति बिगड़ती चली गई। घर में
कमाने वाला कोई नहीं था। अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं दे पाया। जैसे तैसे करके कंप्यूटर कोर्स किया।
ड्राइविंग सीखी। कुछ समय के लिए एक कंपनी में कंप्यूटर ऑपरेटर का काम किया। फिर कुछ ठीक
रुपये मिल रहे थे तो वहीं ड्राइवरी की। अब तो स्टंप्ड ड्राइवर हो गया।
महीने का कितना कमा लेते हो?
दस हजार।
यह गाड़ी आपकी है?
मालिक कोई और है। बुकिंग मेरे हैंड ओवर रहती है। बीस हजार के आस-पास गाड़ी छोड़ती है महीने का।
इसमें गाड़ी की किश्त भी चुकानी होती है। सारा दारोमदार बुकिंग और मेहनत पर है। थोड़ा ऊपर नीचे तो
चलता रहता है। गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाए, कुछ डैमेज हो जाए उसकी जिम्मेवारी मेरी रहती है।
अपने यहाँ सड़कें बहुत खराब हैं। दुर्घटना का डर बना रहता होगा?
माँ-बाप को अकेले गाँव छोड़ आया जी। कहा- साथ चलो शहर। बोले- यहीं रहेंगे। इस मिट्टी में पैदा हुए
इसी में मिल जाएँगे। मैंने भी जिद नहीं की। शहर के खर्चे आप जानती हैं। वे बोले पोते को हमारे पास
छोड़ दो। पर कैसे छोड़ता। उसकी माँ रोने लगी। बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाना है। बड़ा आदमी बनाना
है। मैं नहीं चाहता मेरा बेटा भी सड़कों पर रूळता रहे, मेरी तरह।
बेटा, दादा दादी को याद नहीं करता करता है। कभी कभी पूछता है-पापा, क्या बड़ा आदमी बनने के लिए अपने बड़ों को छोड़ना पड़ता है?
तब तो एक दिन मैं भी आप लोगों को ऐसे ही छोड़ जाऊँगा जैसे आप दादा दादी को छोड़ आए। इस पर
पत्नी उदास आँखों से मेरी ओर ताकने लगती है। मैं मुँह फेर लेता हूँ। नारायण की आँखें भर आती हैं।
नारायण के भीतर भी कहीं ट्रैफिक जाम हो जाता है। चिल्ल-पों, शोर-शराबा होता है। सरपट दौड़ती
जिंदगी की गाड़ी में ब्रेक-से लग जाते हैं। पर धीरे-धीरे निकल जाता है जाम से। उसकी मंजिल बहुत दूर
है। उसे बहुत दूर जाना है। वह पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहता। गाँव, घर, माँ, बाप उसे अपनी तरफ
खींचते हैं। बेटे का भविष्य, पत्नी के सपने और खुद की इच्छाएँ आगे की ओर ले जाती हैं। आगे पीछे
की खींचतान ज्यादा होती है तो नारायण के भीतर कुछ टूटने लगता है। बहने लगता है। पर वह नारायण
है। सो हँसता रहता है।