गोलू के बारे में बचपन से लेकर आज तक किसी ने कोई ऐसी कहानी नहीं सुनी थी जिसमें उसकी कोई शैतानी की बात हो। अब तो खैर वह क्लास नाइन ए यानी नौवीं कक्षा में हमेशा प्रथम आने वाला लड़का था। उसका ध्यान पढ़ाई में इतना लगा रहता कि उसके मम्मी-पापा मन-ही-मन चाहते कि वह अपने कमरे और किताबों की दुनिया से निकलकर बाहर भी देखे। ऐसी भी नहीं था कि उसे बाहरी दुनिया की कोई जानकारी न हो, पर उसका यह ज्ञान सिर्फ टीवी पर आधारित था। गोलू किताबों की दुनिया से निकलता तो टी.वी. की दुनिया में खोने के लिए।
मजे की बात यह थी कि गोलू के घर में शैतान बच्चों की भरमार थी। उसके अपने बड़े भाई मोलू और बड़ी बहन मौली के अलावा उसके ताऊ का एक लड़का और चाचा की दो लड़कियां थीं। यानी कुल मिलाकर वे छह बच्चे थे-तीन लड़के और तीन लड़कियां। वे सब दादा-दादी के साथ दक्षिण कलकत्ता में नौ तल्ले की एक बड़ी बिल्डिंग में ऊपर-नीचे फ्लैट में रहते थे। पर सबका खाना चूंकि दादा-दादी के साथ नीचे ही था, इसलिए सारे बच्चे इकट्ठे होकर काफी हल्ला-गुल्ला और बदमाशियां करते। सबकी सरदार गोलू की अपनी बहन मौली थी, जिसके पास हमेशा खेलने और शैतानी करने की नई तरकीबें रहतीं। गोलू जितना सीधा और शान्त था, वह उतनी ही नटखट थी। उसे घर में और स्कूल में हर जगह डांट पड़ती, पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। बचपन में वह मकान की लिफ्ट का बटन दबाकर भाग जाने, सीढ़ी की रेलिंग से फिसलकर नीचे उतरने और पड़ोसियों की घण्टी बजाकर उन्हें परेशान करने में गोलू को साथ रखना चाहती थी, पर गोलू उसे अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से टुकुर-टुकुर ताकता रहता। वह न उससे कुछ कहता, न किसी से उसके बारे में।
गोलू को यदि किसी से कोई परेशानी थी, तो वह बड़े भाई मोलू से। मोलू की पढ़ाई को लेकर मां अकसर परेशान रहतीं और उसे पढ़ाने के लिए खुद लगी रहतीं। बात यहां तक भी रहती, तो ठीक था, पर मोलू रोज सुबह मुश्किल से स्कूल के लिए तैयार होता। उसके कारण सप्ताह में कम-से-कम एक बार तो गोलू लेट हो जाता। वह तैयार होकर तनाव में भरा रहता कि कब मोलू तैयार हो और किसी तरह वे लोग स्कूल के लिए निकलें। ऊपर से मोलू उसे छेड़ता रहता, अरे यार। अभी देर नहीं हुई है बाबू। क्यों झूठ-मूठ टेंशन करता है। लेट जाओ या जल्दी, तभी भी फस्र्ट ही आओगे।
कभी किसी को गोलू को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी कि यह करो या मत करो। सब जानते थे कि वह कोई गलत काम करना पसन्द नहीं करता। वह अपना सब काम सही वक्त पर सही तरीके से करता। उसे नियमों के खिलाफ जाते किसी ने नहीं देखा। इस मामले में सच पूछा जाए, तो वह कुछ डरपोक भी था। दीवाली पर आवाज के पटाखे चलाना मना होने पर पुलिस की गाड़ी बिल्डिंग के कम्पाउण्ड में आ जाएगी, इस डर से वह एक भी हलकी आवाज के पटाखे तक में हाथ नहीं लगाता। मम्मी-पापा कहते कि इतनी कम आवाज पर पाबन्दी नहीं है, तो भी वह दूर रहता।
शायद यह डर और सावधानी गोलू ने बहुत बचपन में यानी क्लास वन में अपने स्कूल की मिस डिसूजा से सीखी थी। मिस डिसूजा से सारे बच्चे थर-थर कांपते थे, क्योंकि कुछ भी गलती होने पर वह सीधे स्केल से बच्चों के हाथ पर मारती थीं। गोलू उनके डर के मारे कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता था कि उसे मार पड़े। किन्तु जब वह रोज सुबह स्कूल जाते समय दूध पीकर उलटी करने लगा, तब मम्मी ने जाकर मिस डिसूजा से बात की। मिस डिसूजा ने उसे बुलाकर प्यार किया और कहा कि वह गोलू जैसे अच्छे बच्चों को कभी नहीं मारती। तब जाकर गोलू ने उल्टी करना बन्द किया था।
धीरे-धीरे दादा-दादी से लेकर चाची की छोटी लड़की तक सबको पता चल गया था कि गोलू को कोई बात अच्छी नहीं लगती, तो वह एकदम चुप हो जाता है। यूं भी वह बहुत कम बोलता था। हालांकि वह टी.वी. के सीरियल या फिल्मी एक्टरों की हूबहू नकल कर लेता था। जब सारे बच्चे इकट्ठे होकर हल्ला-गुल्ला करते, तो खासकर मौली की फरमाइश पर वह एकाध नई नकल पेश कर देता। सब हंस-हंसकर लोटपोट हो जाते। टी.वी. के हास्य कलाकारों की तो वह पूरे-पूरे डायलॉग समेत नकल कर लेता। इतना ही नहीं वह टी.वी. पर आने वाले डांस को भी वैसे-का-वैसा करके दिखा सकता था। पर बाकी किसी तरह की बातचीत वह अपनी ओर से नहीं करता था। सबकी सुनता और इस तरह चुप रहता जैसे वह हो ही नहीं यानी कि अदृश्य हो।
किसी को पता भी नहीं चला कि गोलू धीरे-धीरे किस तरह उन लोगों की जिन्दगी से कब सचमुच अदृश्य हो गया। गोलू अपना खाना टी.वी. के सामने मंगवाकर खाने लगा। यदि कोई कुछ कहता, तो वह बिना खाए और बिना कुछ कहे पूरा-पूरा दिन भूखा रह लेता। दादा-दादी, पापा-मम्मी सब उसकी इस तरह की जिद से परेशान तो हुए, पर उन्हें लगा कि वह बाकी बच्चों की तरह नहीं है। वह इतना समय का पाबन्द और पढ़ाई में पक्का था कि उसे डॉट लगाना भी मुश्किल था। मम्मी को डर रहता कि कहीं वह फिर उल्टी न करने लगे। मौली उसे हंसाने-गुदगुदाने-बतियाने की कोशिशें करती रहती। कोई न रहने पर खुद उसका खाना चैके से उसके कमरे में ले आती। सबने सोचा कि शायद कुछ दिनों में वह अपने-आप ठीक हो जाएगा।
बाकी बच्चों की तरह न गोलू की नए कपड़े या सामान खरीदने की फरमाइशें थीं, न वह पॉकेट मनी लेकर स्कूल की कैंटीन से कुछ खरीदने की इच्छा रखता। मौली जाने कहां से रुपए जुगाड़कर उसके लिए चॉकलेट, चिप्स और कोल्ड ड्रिंक ले आती। बिना मांगे गोलू को सब कुछ मिलता रहता। एकाध बार उसके बड़े भाई मोलू ने मजाक-मजाक में इस ओर इशारा किया कि गोलू को तो बहुत आराम है। वह तो घर का महाराजा है। पर गोलू का उदास चेहरा देखकर वह डर गया कि गोलू यह सब लेना बन्द न कर दे। सच बात तो यह थी कि मोलू बहुत ही हंसमुख और मजाकिया लड़का था और घर-भर में गप्पें लगाने की अपनी आदत के कारण बच्चों बड़ों सब में लोकप्रिय था। पर वह भी गोलू की नाराजगी से डरता था और उससे मजाक करने से कतराता था।
समय बीत रहा था और बच्चे अनजाने में ही बड़े होते जा रहे थे। घर में इतने सारे लोग थे और सबका सबसे बहुत प्यार का रिश्ता था। बच्चों ने किसी तरह का झगड़ा-झमेला कभी नहीं देखा था जैसा कि आम तौर पर बड़े परिवारों के बच्चे देखते हैं। सब मिलकर एक मात्र अनोखे बच्चे गोलू का ध्यान रखते। किन्तु वे सब मन ही मन उसे लकर चिन्ता भी करते। सबने आपस में एक बार बातचीत की कि गोलू बाकी बच्चों की तुलना में सांवला है, शायद इसलिए वह कुछ उदास है। एक बार दादी की किसी बहन ने उसके सामने ऐसा कुछ कह डाला था। तभी से शायद वह बाहर के लोगों के सामने कभी नहीं आता था। यहां तक कि साल में छह-सात बार घर में आने वाली दादाजी की बहनों ने उसे तीन-फुट से पांच फुट का होते हुए भी नहीं देखा था। एक बार स्कूल से लौटते समय बड़ी बुआजी को वह मकान में नीचे मिल गया, तो बुआजी ने उसे पहचाना ही नहीं। वह वाकई घर का अदृश्य बच्चा बन गया था।
सबने तय किया कि गोलू के लिए अपने कमरे से बाहर घर के बाकी लोगों के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है। गोलू की मम्मी इतने तनाव में आ गईं कि उन्हें बुखार हो गया। तब गोलू को बदलने की कोशिश करेंगे। उसके मम्मी-पापा यदि उसे कुछ कहेंगे तो वह शायद खाना-पीना बन्द कर दे। उनकी पिछली कोशिश का यही नतीजा हुआ था। सबने मिलकर मोलू को भी बहुत डांटा कि उसके कारण गोलू स्कूल में लेट हो जाता था और इसलिए भी वह ऐसा हो गया था। गोलू शायद बहुत गुस्से में भरा रहता था, पर किसी को कुछ न कहने की आदत के कारण वह बिलकुल चुप्पा और अकेला रहने लगा था।
वे लोग कुछ करते, इसके पहले सब व्यस्त हो गए। घर में उन्हीं दिनों एक नया मेहमान शामिल हो गया था। चाची को एक छोटा-सा प्यारा बेटा हुआ। सब उसे देखने अस्पताल जाने लगे, तो देखा कि गोलू साथ जाने के लिए पहले से ही नीचे खड़ा है। अस्पताल में बच्चों को देखने के लिए कांच के सामने बड़ी भीड़ लगी थी। पर गोलू कांच के सामने से किसी तरह नहीं हटा। वह पूरे समय खड़ा अपने छोटे भाई को तब तक देखता रहा जब तक मिलने का समय खत्म नहीं हो गया। गोलू जब चाची से मिला, तो उन्होंने पूछा, मुन्ना कैसा लगा? गोलू बोला, वो तो एकदम गोरा है। तब चाची ने कहा, मैं चाहती हूं कि वह तुम्हारे जैसा बने। इसलिए उसका डाक-नाम ग पर ही रखूंगी। तुम बताओ कि उसका नाम क्या रखा जाए? सारे बच्चों ने इस बात पर खूब हो-हल्ला मचाया पर गोलू हंसता रहा। अन्त में तय हुआ कि उसका प्यार का नाम गुलगुल रखा जाए।
इसके बाद की कहानी में भी गोलू की किसी तरह की शैतानी की कोई बात नहीं है। गोलू गुलगुल का इस कदर ख्याल रखने लगा जैसे वह उसकी दूसरी मां हो। फुरसत मिलते ही वह चाची के कमरे का चक्कर लगा आता। उसका टी.वी. देखना लगभग छूट गया था। साल भर का होते-होते गुलगुल गोलू का इस कदर दोस्त बन गया कि वह गोलू के सिवा किसी के पास जाता ही नहीं था। तीन साल का होते-होते उसने गोलू के कमरे में अपनी चादर-तकिया जमा लिया था। चाची कितनी भी कोशिश करे, वह गोलू के साथ ही सोता। उसका खाना, नहाना, स्कूल के लिए तैयार होना कुछ भी गोलू के बिना नहीं होता। गोलू कई बार उससे परेशान होता, पर गुलगुल को कोई फर्क न पड़ता। पर अगर गुलगुल स्कूल से आने के बाद एक घण्टे तक दिखाई नहीं पड़ता, तो गोलू खुद उसे खोजने चाची के फ्लैट में पहुंच जाता। जाहिर है कि गोलू को बदलने के लिए किसी को कुछ करना नहीं पड़ा। वह अब भी कम बोलता है, पर जब बोलता है, तो उसके मजाक पर जो हंसी का फव्वारा छूटता है, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता।