एक बार कक्षीवान ऋषि प्रियमेध ऋषिके पास गए तथा बोले, प्रियमेध, मेरी एक पहेली सुलझाओ। ऐसी कौन-सी
वस्तु है जिसे जलानेपर प्रकाश नहीं उत्पन्न होता? प्रियमेधने बहुत सोचाय परन्तु वे पहेली नहीं सुलझा पाए।
क्योंकि, किसी वस्तुको जलानेपर उससे थोडा तो भी प्रकाश उत्पन्न होता ही है। तब उन्होंने कहा, मुझे इसका उत्तर
नहीं ज्ञात है। परन्तु, आगे मेरे वंशमें कोई ऐसा विद्वान अवश्य जन्म लेगा, जो इसका उत्तर देगा।
कक्षीवान ऋषिके पास नेवलेके चमडेकी एक बडी-सी थैली थी। उस थैलीमें प्रियंगु (पिप्पली), चावल एवं अधिकता
नामक अनाज भरा था। वे प्रतिवर्ष उसमेंसे एक-एक दाना निकालकर फेंक देते थे। अनाजके सभी दाने समाप्त
होनेतक उन्हें जीवन प्राप्त था। परन्तु, प्रियमेधका जीवन कक्षीवान इतना नहीं था। उनके मरनेके पश्चात उनके
पुत्रने उनका कार्य हाथमें लिया। आगे वह भी बूढा होकर मृत्युको प्राप्त हुआ। इस प्रकार, प्रियमेधके पश्चात नौवीं
पीढीमें साकमश्वका जन्म हुआ।
परन्तु, कक्षीवानकी अनाजकी थैलीमें अब भी दाने शेष थे, इसलिए वे जीवित रहकर अपनी पहेलीके उत्तरकी प्रतीक्षा
कर रहे थे। अब उनकी अवस्था लगभग नौ सौ वर्ष हो गई थी। किन्तु, अभी भी उनकी पहेली नहीं सुलझ पायी थी।
साकमश्वको इस पहेलीने व्याकुल कर दिया था। उसने निश्चय किया कि मैं इस पहेलीको सुलझाऊंगा। उसी समय
उसे एक साम सूझा। उसने वह साम गाया और पहेलीका उत्तर मिल गया।
तब, वह तुरन्त बडे आनन्दके साथ कक्षीवानके पास गया। कक्षीवानने उसे दूरसे ही दौडकर आते देखा, तो उन्हें
उसके दौडकर आनेका कारण समझमें आ गया। उन्होंने अपने शिष्यसे कहा, अरे, मेरी यह थैली नदीमें छोड दो।
मेरी पहेली सुलझाकर मुझे झुकानेवाला मनुष्य मुझे दिखाई दे रहा है। अब जीनेसे कोई लाभ नहीं।
साकमश्व कक्षीवानके निकट आकर बोला, जो मनुष्य केवल ऋचा गाता है, साम नहीं गाता, उसका गायन उस
अग्नि जैसा हैय जिससे प्रकाश नहीं उत्पन्न होता। परन्तु, जो ऋचा के पश्चात तुरन्त साम भी गाता है, उसका
गायन उस अग्नि-जैसा है, जिससे प्रकाश भी उत्पन्न होता है। साकमश्वको जब सामका स्फुरण हुआ तथा उसने उसे
गाया, तब उसे सामके तेजकी अनुभूति हुई। संगीतरहित मन्त्रपठनसे कोई लाभ नहीं है, यह उसने खोज निकाला
था।
साकमश्वने आगे कहा, यह मेरा उत्तर है। मेरे पिताका भी यही उत्तर है। ऐसा कहकर उसने प्रियमेधतक अपने सभी
पूर्वजोंके नाम लिए तथा अपने पूर्वजोंका कलंक धो दिया।
तबसे, यज्ञमें ऋग्वेदकी ऋचाओंके साथ सामवेदके सामका भी गायन आरम्भ हुआ एवं काव्यको संगीतका साथ
मिला।