लवण्या गुप्ता
एक शहर में अर्चना नाम की प्यारी सी लड़की रहती थी। अर्चना के मम्मी और पापा दोनो ही डाक्टर थे। अर्चना 9
कक्षा में पढ़ती थी। उसे पेंटिंग का बहुत शौक था। वह पढ़ाई में कितनी भी व्यस्त रहे, पेंटिंग के लिए समय जरुर
निकाल लेती थी। जब वह बहुत छोटी थी तब उसकी मौसी ब्रुष और रंगों से भरा डब्बा लायी थी। बस तभी से उसे
रंगों से प्यार हो गया, धीरे धीरे वह रंगों की दुनिया में खोती चली गई और वह बचपन से पेंटिंग प्रतियोगिताओं में
भाग लेने लगी। उसने अनेक ईनाम जीते। इन पुरस्कारों ने उसके हौसलों को बढ़ाया। वह पेंटिंग को ओर अच्छे से
सीखने के लिए उसने अनुराधा दीदी की पेंटिंग क्लास ज्वाइन किया लेकिन इसकी इजाजत पापा ने बड़ी मुश्किल से
दी थी। उनका कहना था कि उसे केवल पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए और इधर उधर अपना वक्त बर्बाद नहीं करना
चाहिए परन्तु पापा समझ ही नहीं सकते कि पेंटिंग सीखना वक्त बर्बाद करना नहीं है। अर्चना ने सोच रखा था कि
वह पेंटिंग को ही अपना कैरियर बनायेगी।
जब वह 9 कक्षा पास कर 10 कक्षा में आयी तब उसके पापा ने उसे पेंटिंग क्लास जाने से मना कर दिया। अर्चना
अब से तुम पेंटिंग क्लास नहीं जाओगी। जितना सीखना था सीख लिया। अब पूरी तरह से पढ़ाई पर ध्यान दो।
तुम्हें आगे चल कर डाक्टर बनना है और उनका क्लीनिक संभालना है। अभी से तैयारी करोगी तभी तो मेडिकल की
प्रवेश परीक्षा पास कर पाओगी। लेकिन पापा मैं तो चित्रकार बनना चाहती हू।
बेटा, चित्रकार बनने में कुछ नहीं रखा है। मेरा सपना है कि तुम डाक्टर बनो और हमारा क्लीनिक संभालो समझे
लेकिन पापा मुझे डाक्टर बनने की इच्छा नहीं है। मुझे कुछ नहीं सुनना है। चित्रकार का कोई भविष्य नहीं है।
चित्रकारों को पैसे भी नहीं मिलते हैं। तुम्हारे अंदर चित्रकार बनने का जो भूत सवार है उसे निकाल दो। जाओ और
पढ़ाई करो.
अर्चना अपने पापा से कुछ कह नहीं पायी। आज पापा के फैसले से उसके सारे सपने टूट गये। मन ही मन वह
बहुत दुखी हुई। उसने बेमन से पेंटिंग की क्लास जाना छोड़ दिया।
एक दिन वह अपने कमरे में बैठ कर पढ़ाई कर रही थी उस दिन उसे पढ़ते पढ़ते बहुत रात हो गई थी। उसका
स्टड़ी टेबल खिड़की से लगा था, वहा से उसे रोड़ का पूरा नजारा दिखता था, सामने शर्मा अकंल का घर था,
आजकल शर्मा अंकल के घर ताला लगा था, वो पूरे परिवार के साथ शहर से बाहर गये थे। तभी शर्मा अंकल के
घर से कुछ खटपट की आवाज आयी। उसने देखा अचानक एक आदमी तेजी से उनके घर से बाहर निकला, चोर
नजरों से इधर-उधर देखा और भाग गया। अर्चना के कुछ समझ नही आया लेकिन उस आदमी के हावभाव से लग
रहा था कि कुछ गड़बड़ है। उसने सोचा यह बात तुरंत मम्मी-पापा को बताना चाहिए। उसने पूरे घटना की जानकारी
उन्हें दी।
पापा ने आसपास के लोगों को इक्टठा किया और शर्मा अंकल के घर की ओर चल दिये। अर्चना को याद आया कि
उसके स्कूल में हर माह रुबरु कार्यक्रम होता था जिसमें किसी खास व्यक्तियों को बुलाया जाता है और बच्चे उससे
सवाल पूछते हैं। एक बार उसमें पुलिस अंकल आये थे, उन्होनें बताया था कि चित्रों से भी बहुत सारे अपराधियों को
पकड़ने में मदद मिलती है। क्यों ना मैं उस आदमी का चित्र बना लू जिसे भागते हुए देखा था। हो सकता है कि
यह चित्र आगे चल कर उसकी पहचान करने में काम आयेगा।
थोड़ी देर बाद पापा घर आये, उन्होनें तुरंत पुलिस थाने में फोन किया और शर्मा अंकल के घर में हुई चोरी की
सूचना दी। उन्होनें शर्मा अंकल को भी फोन कर घटना की जानकारी दी। कुछ देर बाद ही पुलिस आ गई। उन्होनें
शर्मा अंकल के घर की तलाशी और छानबीन की। आसपास के लोगों से पूछताछ की परन्तु किसी ने भी चोर को
नहीं देखा था। पुलिस अंकल अर्चना के घर आये और घटना की जानकारी ली। अर्चना ने पूरी घटना दोहरा दी,
क्या तुमने उस चोर को देखा था?
हा अंकल मुझे उसका चेहरा अच्छे से याद है और मैने तो तुरंत उसकी तस्वीर भी बना ली है। आपको दिखाऊ। यह
कह कर वह चोर की बनायी पेंटिंग ले आयी।
अरे वाह, तुमने तो कमाल कर दिया। इसमें तो चोर का चेहरा एकदम स्पष्ट दिख रहा है। देखना तुम्हारे इस चित्र
से हम चोर को जल्दी पकड़ लेंगे। इस चित्र की फोटोकापी करके तुरंत सब थाने में पहुंचा देंगे, थैंक्यू बेटा यह कह
कर पुलिस अंकल चले गये।
दूसरे दिन शर्मा अंकल भी सपरिवार आ गये।
तीन दिन बाद शाम के समय शहर के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी मोहल्ले में आये, सभी लोग इक्टठा हो गये।
उन्होनें शर्मा अंकल को बताया कि चोर पकड़ा गया है और उसके पास से चोरी किये गये गहने प्राप्त हो गये हैं।
उन्होनें कहा कि वो उस लड़की से मिलना चाहते हैं जिसके चित्र की वजह से चोर पकड़ा गया। अर्चना के पापा ने
अर्चना को बुलाया। बेटी तुम तो बहुत अच्छी चित्रकारी करती हो। तुमने अगर चोर की तस्वीर नहीं बनायी होती तो
हम चोर को कभी पकड़ नहीं पाते। तुम्हें सरकार की तरफ से पुरस्कृत किया जा रहा है। देखना डा. वर्मा आपकी
लड़की आगे चल कर बहुत बड़ी चित्रकारा बनेगी और बहुत नाम कमायेगी। इसे चित्रकारी में खूब आगे बढ़ाईयेगा।
डाक्टर बनाने के चक्कर में मत पडियेगा, बच्चों की इच्छा जो बनने में है हमें उसी दिशा में उन्हें आगे बढ़ाने का
प्रयास करना चाहिए जिससे वो अपना 200 प्रतिशत मेहनत दे सकें। सभी लोगों ने अर्चना के लिए जोर से तालियां
बजायी। पापा ने कुछ नहीं कहा।
घर आ कर पापा ने अर्चना से कहा बेटा मुझे माफ कर देना मैं तुम पर डाक्टर बनने का दबाव बना रहा था लेकिन
मैं समझ नही सका कि तुम्हारे भी कोई सपने होगें अब मैं तुम्हें पेंटिंग सीखने से नहीं रोकूंगा और तुम्हारे सपने
को हम सब मिल कर पूरा करने में मदद करेंगे। थैक्यू पापा आप बहुत अच्छे हो
अर्चना के सपने एक बार फिर उसकी आंखों में तैरने लगे।