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बार्सिलोना। वैज्ञानिकों का एक दल हिंद महासागर के सबसे गहरे इलाके जहां रोशनी भी
शायद ही पहुंचती है लेकिन जिंदगी फलती फूलती है, उसका मुआयना करने के लिए गोता लगाने की तैयारी कर
रहा है। इस इलाके को वैज्ञानिक ‘‘मिडनाइट जोन’’के नाम से जानते हैं। ब्रिटेन की अगुवाई में ‘नेकटन मिशन’ के
सदस्य इन वैज्ञानिकों की योजना गहराई में मौजूद समुद्री जीवों का सर्वेक्षण करना और जलवायु परिवर्तन के कारण
होने वाले असर का पता लगाना है। महासागर की गहराइयों में स्थित यह इलाका अभी वैज्ञानिकों से अछूता रहा है।
यह सर्वेक्षण एवं खोज अभियान करीब पांच हफ्ते का होगा और इसमें मालदीव और सेशेल्स सरकार सहयोग कर
रही है। मिशन के दौरान समुद्र तल से हजारों मीटर ऊंचे लेकिन पानी में समाए पर्वतों का भी अध्ययन किया
जाएगा। हिंद महासागर के ‘‘मिडनाइट जोन’’ की गहराई बहुत अधिक होने की वजह से नेकटन के वैज्ञानिक दुनिया
की सबसे आधुनिक पनडुब्बी ‘‘लिमिटिंग फैक्टर’’में सवार होंगे। मिशन के निदेशक ऑलिवर स्टीड्स ने बताया, ‘‘हम
यह जानते हैं कि करीब 1,000 मीटर की गहराई में रोशनी नहीं है लेकिन जीव रहते हैं और वे जैविक रोशनी
छोड़ते हैं। ये वे जीव हैं जो चमकते हैं।’’ स्पेन के बार्सिलोना में पनडुब्बी और उससे संबद्ध मुख्य पोत का समुद्री
परीक्षण करने के दौरान उन्होंने कहा, ‘‘महासागर के जिस इलाके में हम शोध करेंगे वह दुनिया का सबसे अधिक
जैविक विविधता वाला क्षेत्र है और इसलिए हम उसको तलाश करेंगे जो अब तक अज्ञात है।’’उल्लेखनीय है कि
पिछले साल अगस्त में ‘‘लिमिटिंग फैक्टर’’ ने पांच मिशन को पूरा किया था और दुनिया के पांच सबसे गहरे समुद्री
इलाकों का सर्वेक्षण किया था जिनमें 11,000 मीटर की गहराई भी शामिल है जो दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत
चोटी माउंट एवरेस्ट से भी गहरी है। स्टीड्स ने बताया कि गहराई में दबाव को सहने में सक्षम इस पनडुब्बी में दो
लोगों के बैठने की व्यवस्था है और पनडुब्बी के बाहरी कवच को टाइटेनियम से बनाया गया है जिसकी मोटाई नौ
सेंटीमीटर है । आपात स्थिति में 96 घंटे तक जीवित रहने लायक ऑक्सीजन का भंडार है। खोजी अभियान के
नेता रॉब मैक्कॉलम ने बताया, ‘‘दुनिया में केवल पांच वाहन है जो 6,000 मीटर की गहराई तक जा सकते हैं
और उनमें से केवल एक समुद्र तल तक जा सकता है।’’ वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नमूनाकरण, संवेदक और
मानचित्रण तकनीक के जरिये वे कुछ नयी प्रजातियों और समुद्र के अंदर मौजूद पर्वतों की पहचान कर सकेंगे और
इसके साथ ही इंसानी गतिविधियों जैसे जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक से प्रदूषण आदि के प्रभाव का भी पता लगा
सकेंगे। वैज्ञानिकों के इस दल की योजना अपनी इस शोध रिपोर्ट को 2022 में पेश करने की है।