संयोग गुप्ता
वाशिंगटन। बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों और
संगठनों के एक समूह ने संशोधित नागरिकता कानून को मानवीय बताते हुए कहा है कि इस कानून के माध्यम से
भारत ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लाखों गैर-मुसलमानों के प्रति अपने कर्तव्य को आंशिक रूप
से पूरा किया है। उन्होंने कहा कि इन गैर-मुसलमानों को हाल के वर्षों में अपना देश छोड़ना पड़ा है और वे अपने
अधिकारों के लिए दावा भी नहीं कर सकते। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश
और अफगानिस्तान में धार्मिक कारणों से सताए जाने के बाद वहां से भागकर 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए
हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को देश की नागरिकता दी जाएगी। समूह ने बुधवार
को एक बयान में कहा, ‘‘इस कानून के जरिए भारत ने हाल के वर्षों में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान
से भागकर आए लाखों गैर-मुसलमानों के प्रति अपने कर्तव्य की आंशिक पूर्ति की है। ये वे शरणार्थी हैं, जो भारत
में अपने अधिकारों के लिए दावा नहीं कर सकते थे। सीएए ने उन्हें अधिकार दिए हैं।” करीब दर्जन भर देशों की
प्रमुख हस्तियों और संगठनों द्वारा हस्ताक्षरित इस बयान में कहा गया है, ‘‘पूरी दुनिया में शांतिपूर्ण तरीके से रह
रहे हम बांग्लादेश के प्रवासी हिन्दू और अन्य जातीय अल्पसंख्यक भारत की संसद द्वारा पारित संशोधित
नागरिकता कानून (2019) का पूरा समर्थन करते हैं। यह इंसानियत के प्रति एक मानवीय कदम है।’’ जिन
संगठनों ने इस बयान पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें बांग्लादेश माइनोरिटी कोलिजन (अमेरिका), बांग्लादेश माइनोरिटी
राइट्स एलायंस (कनाडा), बांग्लादेश माइनोरिटी काउंसिल (स्विटजरलैंड), बांग्लादेश हिन्दू कोलिजन (अमेरिका) और
बांग्लादेश हिन्दू बौद्ध ईसाई यूनिटी काउंसिल (फ्रांस) शामिल हैं। बयान में कहा गया है, ‘‘हम आशा करते हैं कि
भारत सरकार बांग्लादेश में तकलीफ झेल रहे गैर-मुसलमान समुदाय के कल्याण के लिए काम करती रहेगी।’’