लोगों के घर में रहने से दुनिया की आबोहवा साफ हुई

asiakhabar.com | April 23, 2020 | 12:10 pm IST

संयोग गुप्ता

वॉशिंगटन। कोरोना वायरस की महामारी की वजह से पूरी दुनिया में लोग घरों में बंद हैं।
इसका धरती यह सकारात्मक असर पड़ा है कि अस्थायी रूप से ही सही हवा साफ हो गई। दुनिया में सबसे प्रदूषित
शहरों में से एक दिल्ली जहां पर प्रदूषण की वजह से धुंध छाया रहता है, आसमान साफ दिख रहा है। उत्तर-पूर्वी
अमेरिका (इसी इलाके में न्यूयॉर्क, बोस्टन जैसे शहर हैं) में भी वातावरण में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के प्रदूषण में
30 प्रतिशत की कमी आई है। इटली की राजधानी रोम में पिछले साल मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के मुकाबले इस
साल इस अवधि में प्रदूषण के स्तर में 49 प्रतिशत तक की गिरावट आई है और आसमान में तारे और साफ
दिखाई दे रहे हैं। लोग उन स्थानों पर भी जंगली जानवरों को देख रहे हैं जहां पर आमतौर पर ऐसा नहीं देखा जाता
है। अमेरिका के शिकागो शहर के मिशिगन एवेन्यू और सैन फ्रांसिस्कों के गोल्डन गेट ब्रिज के पास काइयोट (उत्तरी
अमरीका में पाया जाने वाला छोटा भेड़िया) देखा गया है। इसी प्रकार चिली की राजधानी सेंटियागो की सड़कों पर
तेंदुआ घूमता हुआ नजर आया। वेल्स में बकरियों ने शहर पर कब्जा कर लिया। भारत में भूखे बंदर लोगों के घरों
में घुसकर फ्रीज से खाना निकाल पर खाते हुए देखे गए हैं। ड्यूक विश्वविद्यालय के संरक्षणवादी वैज्ञानिक स्टुअर्ट
पिम्म ने कहा, ‘‘यह हमें असाधारण तरीके से यह विचार करने का मौका दे रहा है कि हम इंसानों ने कैसे इस ग्रह
को तहस-नहस कर दिया है। यह हमें मौका देता है कि जादू की तरह हम देखें कि दुनिया कैसे बेहतर हो सकती है।
’’ स्टैनफोर्ड वुड्स पर्यावरण संस्थान के निदेशक क्रिस फिल्ड ने इनसानों के घर में रहने की वजह से पारिस्थितिकी
में आने वाले बदलाव का आकलन करने के लिए वैज्ञानिकों को एकत्र किया है। उन्होंने कहा, ‘‘ बाकी लोगों की
तरह वैज्ञानिक भी घरों में बंद हैं लेकिन वे किट पतंगों, मौसम की परिपाटी, शोर और प्रकाश प्रदूषण में होने वाले
अप्रत्याशित बदलाव का पता लगाने के लिए उत्सुक हैं। इटली सरकार समुद्री खोज पर काम कर रही है ताकि लोगों
के नहीं होने पर समुद्र में होने वाले बदलाव का अध्ययन किया जा सके।’’ फिल्ड ने कहा, ‘‘कई तरीकों से एक
तरह से हमने धरती की प्रणाली को तबाह कर दिया है और हम देख रहे हैं कि धरती कैसी प्रतिक्रिया करती है।’’
हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष डैन ग्रीनबाउम ने बताया कि शोधकर्ता पारंपरिक वायु प्रदूषक जैसे नाइट्रोजन
ऑक्साइट, धुंध और छोटे कण में आई नाटकीय कमी का आकलन कर रहे हैं। इस तरह के प्रदूषकों से दुनिया भर
में करीब 70 लाख लोगों की मौत होती है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वायुमंडल वैज्ञानिक बैरी लेफर ने
बताया कि 2005 से उपग्रह के जरिये वातावरण में नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड के स्तर को मापा जा रहा है और
पहली बार बोस्टन से वाशिंगटन तक की हवा सबसे अधिक साफ है। इसकी बड़ी वजह ईंधन की खपत में कमी
आना है क्योंकि ये प्रदूषक कम समय तक रहते हैं और इसलिए हवा साफ भी जल्दी हो गई। उन्होंने बताया कि
पिछले पांच के आंकड़ों की तुलना में इस साल मार्च में पेरिस में 46 प्रतिशत, बेंगलुरु में 35, सिडनी में 38
प्रतिशत, लॉस एंजिलिस में 26 प्रतिशत, रियो डी जेनिरियो में 26 प्रतिशत और डर्बन में नौ प्रतिशत तक प्रदूषण
के स्तर में गिरावट आई। लेफर ने बताया, ‘‘यह हमें झलक दिखाता है कि अगर हमने प्रदूषण फैलाने वाली कारों
पर रोक लगा दी तो क्या हो सकता है।’’ उन्होंने बताया कि भारत और चीन में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी
आई है। तीन अप्रैल को जालंधर के लोग जब उठे तो उन्होंने ऐसा दिन दशकों में नहीं देखा था क्योंकि करीब 160
किलोमीटर दूर स्थित बर्फ से ढंकी हिमालय की पहाड़ियां साफ दिखाई दे रही थी। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से
सबद्ध चिकित्सा विद्यालय में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य शोध की निदेशक डॉ. मैरी प्रूनिकी ने बताया कि साफ
हवा का मतलब है कि अस्थमा के मरीजों के लिए मजबूत फेफड़े खासतौर पर बच्चों के लिए। इससे पहले उन्होंने

रेखांकित किया था कि कोरोना वायरस का उन लोगों के फेफड़ों पर गंभीर असर पड़ता है जो प्रदूषण वाले इलाके में
रहते हैं। ब्रेकथ्रू इंस्टीट्यूट के जलवायु वैज्ञानिक जेक हाउसफादर ने कहा कि गत 100 साल या इससे भी अधिक
साल से ग्रीनहाउस गैस ऊष्मा को अवशोषित कर रही हैं जिससे जलवायु गर्म हो रहा है, ऐसे में लॉकडाउन का
जलवायु परिवर्तन पर असर होने की कम ही संभावना है।


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