विनय गुप्ता
अपनी सेनाओं को ताकतवर बनाने और रक्षा जरूरतों को पूरा करने में आज दुनिया का हर देश जुटा है। सरकार
पर था कि वह इस बार रक्षा बजट में इजाफा करे। सो सरकार ने ऐसा ही किया। वित्त वर्ष 2021-22 के लिए
रक्षा बजट 4.78 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह पिछले 15 वर्ष में सर्वाधिक रक्षा बजट है। इसके
लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को धन्यवाद दिया है।
वित्त मंत्री ने कहा कि 2021-22 के लिए रक्षा क्षेत्र के लिए 4,78,195.62 करोड़ रुपए के आवंटन किया
गया है। इसमें 1,15,850 लाख करोड़ रुपए की पेंशन शामिल हैं। पिछले साल 4,71,378 करोड़ रुपए (रक्षा
पेंशन सहित) थे। पेंशन को छोड़कर, यह पिछले साल के 3.37 लाख करोड़ से 3.62 लाख करोड़ आंकी गई
है। सशस्त्र बलों के लिए आधुनिकीकरण कोष पिछले साल के एक लाख 13 हजार 734 रुपए से बढ़कर वित्त
वर्ष 2021-22 के लिए एक लाख 35 हजार 60 करोड़ रुपए हो गया है।
यह लगातार 7वां साल है, जब मोदी सरकार ने डिफेंस बजट बढ़ाया है। इससे पहले 2020 में रक्षा बजट
4.71 लाख करोड़ रुपए था। डिफेंस के कुल बजट में अगर पेंशन की राशि हटा दी जाए तो यह करीब 3.63
लाख करोड़ है। वर्ष 2020 में यह राशि 3.37 लाख करोड़ रुपए थी। 2019-20 की तुलना में 3.18 लाख
करोड़ से बढ़ाकर 2020-21 में 3.37 लाख करोड़ किया गया था। बता दें कि सेना के आधुनिकीकरण और
नए व अत्याधुनिक हथियारों की खरीद के लिए 1,10,734 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। सरकार ने
भले ही बजट में बढ़ोतरी की हो। लेकिन, यह दुनिया के कई देशों से कम है। रक्षा जानकार हर बार रक्षा बजट
को जीडीपी के तीन फीसदी तक करने की मांग करते रहे हैं। चीन की तुलना में भारत का रक्षा बजट काफी
कम है। चीन का रक्षा बजट करीब 19 लाख करोड़ रुपए (261 अरब डॉलर) है। वहीं, भारत करीब 5 लाख
करोड़ रुपए (71 अरब डॉलर) का रक्षा बजट है।
इससे पहले 2019 में रक्षा बजट तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक रखा गया था, जो अब तक किसी भी साल
की तुलना में सबसे अधिक था। तब सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में सुधार के लिए भाजपा के सांसद भुवनचंद्र
खंडूरी की अध्यक्षता वाली रक्षा मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने ईमानदार पहल न करने पर रक्षा
मंत्रालय की खिंचाई की थी। समिति ने कहा था कि पठानकोट और उरी में आतंकी हमलों के बावजूद सरकार
अब भी चेती नहीं है। इस समिति ने देश का रक्षा बजट बढ़ाने की वकालत की थी। समिति ने कहा था कि इन
हमलों के बाद भी मंत्रालय ने जरूरी कदम नहीं उठाए हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश का रक्षा बजट बढ़ाने
की वकालत की थी। इसलिए तब बजट बढ़ाया गया था। इस बार चीन के साथ जारी तनाव के बीच फिर से
समिति का दबाव सरकार पर था। समिति ने तोपखाने, हवाई प्रतिरक्षा तोप, बुलेट प्रूफ जैकेटों, हेलीकाप्टरों,
मिसाइलों, पनडुब्बियों, नौसेना जहाजों, लड़ाकू व परिवहन विमानों आदि के कार्यक्रमों एवं योजनाओं में
अत्यधिक विलंब पर चिंता व्यक्त की है तथा नई पद्धतियों के विकास व मौजूदा प्रक्रियाओं को दुरुस्त करने
पर जोर दिया है।
देखा जाए तो दो दशकों से भारत का सेना पर होने वाला कुल खर्च हमारे सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2.75
प्रतिशत के आसपास मंडराता रहा है। वहीं दूसरी तरफ इस पूरे दौर में भारत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि
दर पिछले दशक में कहीं ज्यादा बल्कि पूरे इतिहास में सबसे ज्यादा बनी रही है। जिसका एक बड़ा नतीजा यह
हुआ है कि बजट में रक्षा के लिए कुल जमा संसाधनों का आवंटन भी अपने आप ही काफी बढ़ गया है।
भारतीय सेना पिछले काफी वक्त से अपने लिए देश की जीडीपी के तीन प्रतिशत संसाधन आवंटित करने की
मांग करती रही है ताकि आधुनिकीकरण की जरूरत ठीक से पूरी हो सके। भारत में रक्षा बजट को लेकर
ज्यादातर चर्चा सिर्फ इस मुद्दे पर होती है कि सरकार सुरक्षा के मद के लिए कितना पैसा आवंटित कर रही है।
लेकिन बुनियादी मुद्दा यह है कि इस पैसे का उपयोग कितनी अच्छी तरह और कितने असरदार ढंग से लक्ष्य
हासिल करने के लिए होता है।
भारत लगभग सभी मामलों में चीन से काफी पीछे है। चीन ने अपने विनिर्माण क्षेत्र की प्रगति के दम पर बहुत
धन कमाया है और इस कमी के बहुत बड़े हिस्से को सेनी की ताकत को निखारने में खर्च किया है। इसलिए
यदि भारत को दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन स्थापित करना है तो पहले उसे अपने यहां की आधारभूत
संरचना का विकास करने के साथ रक्षा आयात पर निर्भरता भी कम करनी होगी। रक्षा बजट में बढ़ोतरी के
संदेश मायने रखते जरूर हैं। सरकार के इस कदम से आम लोगों में भी यह भावना अब जन्म लेगी कि सरकार
जवानों और सेना के प्रति सिर्फ बातें ही नहीं करती, उनका कल्याण करने का जज्बा भी रखती है। यह कदम
चीन और पाक को सख्त संदेश देने वाला भी कहा जा रहा है।