नई दिल्ली। हम सभी जानते हैं कि ब्लड टाइप्स A, B और O के वैरिएशंस होते हैं। इसमें भी O नेगेटिव ब्लड को दुनिया की सबसे दुर्लभ श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन आपको बता दें कि इसके अलावा भी एक ऐसा ब्लड ग्रुप है जिसे दुनिया में सबसे दुर्लभ श्रेणी में रखा जाता है। यह इतना दुर्लभ है कि दुनिया में मात्र 40 लोगों का ही यह ब्लड ग्रुप है। इस ब्लड टाइप की खोज 56 साल पहले हुई थी।
इसकी खोज 1952 में मुंबई के एक साइंटिस्ट ने की थी, जिसकी वजह से इसे बॉम्बे ब्लड का नाम दिया गया है। उस समय भी ये ब्लड ग्रुप केवल 4 लोगों में ही मिला था। ये ब्लड इतना दुर्लभ है कि पूरी दुनिया में केवल 9 लोग ही इसके डोनर हैं। इसके कारण इसे ब्लड को गोल्डन ब्लड भी कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक हमारे रेड ब्लड सेल में 342 एंटीजेंस होते हैं और ये एंटीजेंस मिलकर एंटीबॉडीज बनाने का काम करते हैं। किसी भी ब्लड ग्रुप का निर्धारण इन एंटीजेंस की संख्या पर डिपेंड करता है। सामान्य रूप से लोगों के ब्लड में 342 में से 160 एंटीजेंस होते हैं। अगर ब्लड में इसकी संख्या में 99% कमी देखने को मिलती है, तो उसे दुर्लभ श्रेणी में रखा जाता है। यही संख्या अगर 99.99% तक पहुंच जाती है, तो ये दुर्लभ से भी ज्यादा दुर्लभ हो जाता है।
1974 में 10 साल के बच्चे थॉमस को ब्लड में इंफेक्शन के बाद जिनेवा के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया, पर हॉस्पिटल समेत ब्लड बैंक में भी थॉमस के ग्रुप वाला ब्लड नहीं मिला, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। थॉमस की मौत के बाद डॉक्टरों ने उसका ब्लड सैंपल एम्स्टर्डम और पेरिस भेजा, जहां डॉक्टरों को ये बात पता लगी कि उसके ब्लड में Rh था ही नहीं।