मल्टीमीडिया डेस्क। यूरोप के खूबसूरत देशों में से एक आइसलैंड में जुर्म नाम की चीज नहीं है। कम से कम आज के हालात को देखकर तो यही कहा जा सकता है। आलम यह है कि देश के अधिकांश पुलिस अधिकारियों के पास भी बंदूक नहीं रहती है।
आइसलैंड एक शांतिप्रिय देश है जिसकी न तो आर्मी है और न ही नेवी। पुलिस ने साल 2013 में जब आइसलैंड में एक व्यक्ति को गोली मार दी थी, तो यह अखबारों की सुर्खियां बन गई थी। इस देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब पुलिस ने आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल कर किसी की हत्या की थी। आइसलैंड में करीब तीन लाख लोग रहते हैं।
हालांकि, देश की एक तिहाई आबादी के पास हथियार हैं। यह दुनिया का 15वां ऐसा देश है, जहां प्रति व्यक्ति के लिहाज से सबसे ज्यादा हथियार हैं। मगर, इसके बाद भी अपराधिक घटनाएं यहां कम ही देखने को मिलती हैं।
ब्रिटेन
हालांकि, हाल के दिनों में ब्रिटेन में अपराधिक घटनाओं की संख्या में इजाफा हुआ है। मगर, फिर भी यहां अपराध काफी कम हैं। लोग पुलिस तक आसानी से पहुंच हासिल कर सकते हैं। यहां 19वीं शताब्दी के बाद से पैट्रोलिंग करने वाले ब्रिटिश अधिकारी स्वयं को नागरिकों के संरक्षक मानते हैं, जिन्हें आसानी से लोगों की मदद के लिए सुलभ होना चाहिए।
पुलिस और संदिग्ध अपराधियों के बीच घातक संघर्षों की बहुत कम घटनाएं हैं। साल 2004 के सर्वे में ब्रिटेन के पुलिस फेडरेशन के 82 प्रतिशत सदस्यों ने कहा कि वे नियमित रूप से ड्यूटी के दौरान हथियार लेकर नहीं चलना चाहते हैं। करीब एक तिहाई ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों ने ड्यूटी पर रहने के दौरान अपने जीवन पर खतरा बताया, लेकिन फिर भी हथियारों को लेकर चलने का विरोध किया।
न्यूजीलैंड
ऑकलैंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के सीनियर क्रिमिनोलॉजी लेक्चरर जॉन बटल ने एक निबंध में कहा कि वास्तव में पुलिस अधिकारियों के लिए हथियार लेकर चलना सुरक्षित नहीं है। उन्होंने 2010 में प्रकाशित एक पत्र में लिखा था कि न्यूजीलैंड में एक पुलिस अधिकारी के मुकाबले एक किसान ज्यादा खतरनाक है। पुलिस को हथियार देने का मतलब है कि अपराधियों में भी हथियारों की दौड़ शुरू हो जाएगी और इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ेगी। सिडनी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एसोसिएट प्रोफेसर फिलिप एल्फर ने कहा कि देशभर में केवल एक दर्जन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को ही बंदूक दी गई है।
नॉर्वे
इस स्कैंडिनेवियाई देश में हत्याएं बहुत दुर्लभ ही होती हैं। इस देश में भी पुलिस अधिकारी बंदूक लेकर नहीं चलते हैं। मगर, साल 2011 में नॉर्वे एक त्रासदी ने यह साबित कर दिया था कि पुलिस अधिकारियों के निहत्थे घूमने से क्या खतरा हो सकता है। एंडर्स बेहरिंग ब्रेविक ने एक ग्रीष्मकालीन शिविर पर हमला कर 77 लोगों की जान ले ली थी। बहुत से लोगों ने इस भयावह हत्याकांड के लिए पुलिस की देर से प्रतिक्रिया करने को दोषी ठहराया था। हालांकि, अब तक निहत्थे पुलिस अधिकारियों की परंपरा आतंकवाद के डर से भी मजबूत साबित हुई है।