रिम्बो (स्वीडन)। यमन के युद्धरत दल संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में चल रही शांति वार्ता में एक अहम बंदरगाह पर संघर्ष विराम पर सहमत हो गए हैं। देश में चार साल के विध्वंसकारी युद्ध के बाद यह एक अहम कदम साबित हो सकता है। हुदयदाह बंदरगाह पर अगर यह समझौता लागू होता है तो इससे देश को राहत मिल सकती है जहां 1.4 करोड़ लोग अकाल की कगार पर हैं। यह बंदरगाह सहायता एवं भोजन सामग्री के आयात के लिए प्रमुख रास्ता है। स्वीडन में चल रही शांति वार्ता के सातवें और अंतिम दिन यमन के विदेश मंत्री खालिद अल-यमनी और विद्रोहियों के वार्ताकार मोहम्मद अब्देलसलाम ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस द्वारा घोषणा करने के बाद दोनों नेताओं ने हुदयदाह समझौते को लेकर विरोधाभासी बयान दिए।
एक सप्ताह तक चली इस वार्ता में कई अहम मुद्दे अनसुलझे ही रहे। नए दौर की वार्ता जनवरी के अंत में शुरू होनी है। विश्लेषकों का अनुमान है कि अमेरिका इस संघर्ष को खत्म करने के लिए यमन सरकार के मुख्य समर्थक सऊदी अरब पर दबाव बनाए रखेगा। यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों और राष्ट्रपति अबेदरब्बो मंसूर हादी के प्रति वफादार सेना के बीच साल 2014 से युद्ध चल रहा है। साल 2015 में लड़ाई उस समय तेज हो गई जब सऊदी अरब के नेतृत्व में सैन्य गठबंधन ने सरकार के समर्थन में कदम उठाए। बृहस्पतिवार की शाम को जारी किए गए हुदयदाह समझौते के तहत हुदयदाह और उसके तीन बंदरगाहों पर तुरंत प्रभाव से ‘‘संघर्षविराम’’ लागू होगा। संयुक्त राष्ट्र बंदरगाहों के प्रबंधन और निरीक्षण में ‘‘प्रमुख भूमिका’’ निभाएगा। ये बंदरगाह चार साल तक विद्रोहियों के कब्जे में रहे।