नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाघों को वनों का संरक्षक बताते हुए कहा
कि भारत ने नौ वर्षों में बाघों की संख्या दोगुनी करने में सफलता पायी है और इस समय 2967 बाघ हो
गये हैं। श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में स्नातक द्वितीय वर्ष की
छात्रा सृष्टि विद्या की फोन कॉल में 12 अगस्त का डिस्कवरी चैनल में बाघों एवं वन्य जीवन पर एक
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के अनुभव के बारे में पूछे जाने पर कहा, “पिछले कुछ हफ़्तों में मैं जहां भी गया
लोगों से मिला हूं वहां ‘मैन वर्सेस वाइल्ड’ का भी ज़िक्र आ ही जाता है। इस एक शो से मैं न सिर्फ
हिंदुस्तान दुनिया भर के युवाओं से जुड़ गया हूं। मैंने कभी सोचा नही था कि युवा दिलों में इस प्रकार से
मेरी जगह बन जायेगी। मैंने कभी सोचा नही था कि हमारे देश के और दुनिया के युवा कितनी विविधता
भरी चीजों की तरफ ध्यान देते हैं। यह भी नहीं सोचा था कि कभी दुनिया भर के युवा के दिल को छूने
का मेरी ज़िन्दगी में अवसर आयेगा।”
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें जब से जहां भी जाने का अवसर मिला और अंतर्राष्ट्रीय योग
दिवस के कारण से स्थिति ये बन गई है कि दुनिया में जिस किसी के पास जाते हैं तो कोई न कोई
पाँच-सात मिनट तो योग के संबंध में सवाल-जवाब करते ही करते हैं। उन्होंने कहा, “शायद ही दुनिया का
कोई बड़ा ऐसा नेता होगा जिसने मेरे से योग के संबंध में चर्चा न की हो और ये सारी दुनिया में मेरा
अनुभव आया है। लेकिन इन दिनों एक नया अनुभव आ रहा है। जो भी मिलता है, जहां भी बात करने
का मौका मिलता है। वे वन्यजीवन एवं पर्यावरण, बाघ, शेर, जीव-सृष्टि के विषय में चर्चा करते हैं। लोगों
की बहुत गहरी रूचि है। डिस्कवरी ने इस कार्यक्रम को 165 देशों में उनकी भाषा में प्रसारित करने की
योजना बनाई है।
श्री मोदी ने कहा कि आज जब पर्यावरण, वैश्विक तापवृद्धि, जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मंथन का
दौर चल रहा है। ऐसे में यह कार्यक्रम भारत का सन्देश, भारत की परंपरा, भारत के संस्कार यात्रा में
प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, इन सारी बातों से विश्व को परिचित कराने में बहुत मदद करेगा। उन्होंने
कहा कि दुनिया में लोग भारत में जलवायु न्याय एवं स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में उठाये गए कदमों को
अब लोग जानना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री ने डिस्कवरी के इस कार्यक्रम के बारे में बताया कि प्रस्तोता बियर ग्रिल्स और उनके बीच
संवाद में उच्च प्रौद्योगिकी एवं त्वरित अनुवाद का इस्तेमाल किया गया। इससे उनके एवं प्रस्तोता के
बीच संवाद आसान हो गया था। उन्होंने कहा कि इस शो के बाद बड़ी संख्या में लोग जिम कॉर्बेट
नेशनल पार्क के विषय में चर्चा करते नजर आए हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे भी प्रकृति और
जन्य-जीवों से जुड़े स्थलों पर जरुर जाएं।
उन्होंने कहा, “मैंने पहले भी कहा है, मैं जरुर कहता हूं आपको। अपने जीवन में पूर्वोत्तर जरुर जाइये।
क्या प्रकृति है वहां। आप देखते ही रह जायेंगें। आपके भीतर का विस्तार हो जाएगा। 15 अगस्त को
लाल किले से मैंने आप सभी से आग्रह किया था कि अगले 3 वर्ष में, कम-से-कम 15 स्थान और भारत
के अन्दर 15 स्थान और पूरी तरह पर्यटन के लिए ही ऐसे 15 स्थान पर जाएं, देखें, अध्य्यन करें,
परिवार को लेकर जाएं, कुछ समय वहां बिताएं। विविधिताओं से भरा हुआ देश आपको भी ये विविधिताएं
एक शिक्षक के रूप में, आपको भी, भीतर से विविधिताओं से भर देंगे। आपका अपने जीवन का विस्तार
होगा। आपके चिंतन का विस्तार होगा।”
श्री मोदी ने कहा, “हिंदुस्तान के भीतर ही ऐसे स्थान हैं जहां से आप नई स्फूर्ति, नया उत्साह, नया
उमंग, नई प्रेरणा ले करके आएंगें और हो सकता है कुछ स्थानों पर तो बार-बार जाने का मन आपको भी
होगा, आपके परिवार को भी होगा।” उन्होंने कहा कि भारत में पर्यावरण की देखभाल की चिंता
स्वाभाविक नजर आ रही है। पिछले महीने मुझे देश में बाघ की संख्या के आंकड़े जारी करने का सौभाग्य
मिला था। भारत में बाघों की आबादी 2967 है। कुछ साल पहले इससे आधे से भी कम थे।
उन्होंने कहा कि बाघों को लेकर 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में टाइगर समिट हुआ था। इसमें दुनिया
में बाघों की घटती संख्या को लेकर चिंता जाहिर करते हुए एक संकल्प लिया गया था कि 2022 तक
पूरी दुनिया में बाघों की संख्या को दोगुना करना है। लेकिन यह नया भारत है जहां हम लक्ष्यों को जल्दी
से जल्द पूरा करते हैं। हमने 2019 में ही अपने यहां बाघों की संख्या दोगुनी कर दी। उन्होंने कहा कि
जब भी हम प्रकृति और वन्य-जीवों की बात करते हैं तो केवल संरक्षण की ही बात करते हैं। लेकिन अब
हमें संरक्षण से आगे बढ़ कर करुणा को लेकर सोचना ही होगा।
श्री मोदी ने प्राचीन शास्त्रों में बाघ एवं वन के बारे में एक श्लोक को उद्धृत किया, “निर्वनो बध्यते
व्याघ्रो, निर्व्याघ्रं छिद्यते वनम। तस्माद् व्याघ्रो वनं रक्षेत्, वनं व्याघ्रं न पालयेत्।।” उन्होंने कहा कि यदि
वन न हों तो बाघ मनुष्य की आबादी में आने को मजबूर हो जाते हैं और मारे जाते हैं और यदि जंगल
में बाघ न हों तो मनुष्य जंगल काटकर उसे नष्ट कर देता है इसलिए वास्तव में बाघ वन की रक्षा करता
है, न कि, वन बाघ की। हमारे पूर्वजों ने कितने उत्तम तरीके से विषय को समझाया है। इसलिए हमें
अपने वनों, वनस्पतियों और वन्यजीवों का न केवल संरक्षण करने बल्कि ऐसा वातावरण बनाने की
आवश्यकता है जिसमें वे सही तरीके से फल-फूल सकें।