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ढाका। बांग्लादेशी लोक संगीत के दिग्गज फकीर आलमगीर का यहां एक अस्पताल में कोविड-
19 के कारण निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे। उनके परिवार ने इसकी पुष्टि की । रात करीब 11.30 बजे
यूनाइटेड अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। शुक्रवार की रात उनके बेटे मशूक आलमगीर राजीव ने यह जानकारी
दी। टीका लगाए जाने के बावजूद, आलमगीर 14 जुलाई को कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। अगले दिन उन्हें
अस्पताल में भर्ती कराया गया जिसके बाद डॉक्टर उन्हें तुरंत गहन चिकित्सा इकाई में ले गए। 19 जुलाई को
उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें लाइफ सपोर्ट पर रखा गया था। गनो-संगीत (जनता का संगीत) गायक, बाद में एक
पॉप कलाकार, और 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान स्वाधीन बांग्ला बेतर केंद्र के साथ अपने काम के लिए जाने
जाने वाले, उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार एकुशी पदक से 1999 में सम्मानित किया गया था।
आलमगीर ने अपने संगीत करियर की शुरूआत 1966 में की थी। वह 1969 के जन विद्रोह में क्रांति शिल्पी गोष्ठी
और गणशिल्पी गोष्ठी के सदस्य के रूप में शामिल हुए। जब मुक्ति संग्राम शुरू हुआ, तो वह निर्वासन में बांग्लादेश
सरकार द्वारा चलाए जा रहे रेडियो स्टेशन स्वाधीन बांग्ला बेतर केंद्र में शामिल हो गए। उनके कुछ उल्लेखनीय
गीत ओ सोखिना गेसोश किना भुइल्या अमारे, अमी ओहन रिश्का चलाई, ढाका शोहोरे ., शांताहार, नेल्सन मंडेला,
नाम तार छिलो जॉन हेनरी और बांग्लार कॉमरेड बंधु हैं। आलमगीर ने 1976 में सांस्कृतिक संगठन ऋशिज शिल्पी
गोष्ठी की स्थापना की थी, और उन्होंने गोनो संगीत शामन्या परिषद (जीएसएसपी) के अध्यक्ष के रूप में भी काम
किया। उनके अगले दो प्रकाशन मुक्तिजुद्दर स्मृति बिजॉयर गान और गोनो संगीतर ओटिट ओ बोटरेमन थे।
2013 में उन्होंने तीन पुस्तकें प्रकाशित कीं – अमर कोठा, जरा अच्छे हृदय पोते और स्मृति अलापोनी मुक्तिजुद्धो।