न्यूयॉर्क (अमेरिका)। अमेरिका की संघीय अदालत से पाकिस्तानी मूल के कनाडाई कारोबारी तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित किए जाने की अनुमति मिलने के साथ ही देश ने 26/11 मुंबई हमलों के साजिशकर्ताओं को न्याय के कठघरे में लाने की अपनी लड़ाई में बड़ी जीत हासिल की है। इसके साथ ही, फरवरी 2002 से एक दशक से अधिक की अवधि में विदेशी सरकारों द्वारा भारत प्रत्यर्पित या निर्वासित किए गए भगोड़ों की संख्या बढ़कर 60 हो गई है।
कैलिफोर्निया की सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की मजिस्ट्रेट जैकलीन चूलजियान ने बुधवार को 48 पन्नों का आदेश जारी किया और कहा कि 62 वर्षीय राणा को भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत प्रत्यर्पित किया जाना चाहिए। आदेश में कहा गया है, ”अदालत ने इस अनुरोध के समर्थन और विरोध में प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की समीक्षा की है और सभी दलीलों पर विचार किया है। इस तरह की समीक्षा और विचार के आधार पर अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जाना चाहिए। अदालत अमेरिका के विदेश मंत्री को प्रत्यर्पण की दिशा में कार्रवाई करने के लिए अधिकृत करती है।”
विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, फरवरी 2002 और दिसंबर 2015 के बीच विदेशी सरकारों ने अब तक 60 भगोड़ों को या तो भारत प्रत्यर्पित किया है या निर्वासित किया है। इनमें से 11 भगोड़े अमेरिका से, 17 संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से, चार कनाडा और चार थाईलैंड से प्रत्यर्पित किए गए हैं। वर्ष 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम धमाका मामले में अपनी भूमिका के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे माफिया अबु सलेम को नवंबर 2005 में पुर्तगाल से प्रत्यर्पित किया गया था।
वहीं, मुंबई बम हमलों में शामिल इकबाल शेख कासकर, इजाज पठान और मुस्तफा अहमद उमर दोसा को 2003 की शुरुआत में यूएई से प्रत्यर्पित किया गया था। आतंकवाद, संगठित अपराध, आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी, बच्चों के यौन शोषण, वित्तीय धोखाधड़ी, हत्या और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसे अपराधों में मुकदमे का सामना करने के लिए इन भगोड़ों को भारत प्रत्यर्पित किया गया है। भारत और अमेरिका के बीच 25 जून 1997 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री आई के गुजराल के शासन में प्रत्यर्पण संधि हुई थी। इस संधि पर भारत के तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री सलीम शेरवानी और अमेरिका के तत्कालीन उप विदेश मंत्री स्ट्रोब टैलबोट ने हस्ताक्षर किए थे।