पहले विश्व युद्ध में जर्मनी हार चुका था। मगर इसके बाद भी युद्ध की विभीषिका खत्म नहीं हुई। रह-रहकर झड़पें चलती रहीं और उन लोगों को मार दिया जाता, जो विरोधी विचारधारा से जुड़े थे।
उस दौर में एक जर्मन युवक रोहेम को लगता था कि युद्ध में जीते देशों ने उसके देश जर्मनी के साथ छल किया है। उसके मन में रात-दिन अपने देश के खोए सम्मान को लौटाने और विरोधियों से बदला लेने की बातें चलती रहतीं।
उम्र उसकी ज्यादा नहीं थी, लेकिन जोश सैनिकों जैसा था। अपने देश के लिए लड़ने की जिद लिए वह उन लोगों के संपर्क में आया, जो उसी की तरह जर्मनी के पराभव से निराश और टूट चुके थे तथा बदला लेना चाहते थे। वह उनके साथ गुपचुप गतिविधियों में जुट गया। मगर इसकी भनक विरोधियों को लग गई। उन्होंने उसके पीछे गुप्तचर लगा दिए।
अंततः एक दिन उसे म्युनिख शहर की एक सड़क पर पकड़ लिया गया। सैनिकों ने उसे घेर लिया और बंदूकें तान दीं। वह डरकर भागा नहीं, बल्कि विरोध में निडर खड़ा हो गया। उसे चेतावनी दी गई तो वह मुस्कराने लगा। अंततः उसे गोली मार दी गई। मरते समय भी उसके चेहरे पर मृत्यु का भय नहीं, बल्कि देश के प्रति स्वाभिमान के भाव थे।