काबुल। अफगानिस्तान में हिंसा के लिए जिम्मेदार तालिबान ने बातचीत की पेशकश की है। कहा है कि 17 साल से जारी हिंसा को वह बातचीत के जरिये खत्म करना चाहता है। लेकिन उसकी पेशकश को अमेरिकी सुरक्षा बलों के साथ मुकाबले में कमजोरी के तौर पर हर्गिज न देखा जाए। इस बीच संयुक्त राष्ट्र के आए ताजा आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान में जारी हिंसा में सन 2017 में दस हजार से ज्यादा लोग मारे गए या घायल हुए। मरने वालों की संख्या 3,438 रही, जो बीते वर्षों की तुलना में सर्वाधिक रही।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक अफगान नीति का असर तालिबान पर पड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीति के उलट ट्रंप ने अफगानिस्तान में ताकत बढ़ाई है और तालिबान पर हमले बढ़े हैं। इसी का नतीजा है कि अगस्त 2017 से बढ़ी अमेरिकी कार्रवाई के चलते तालिबान को दो प्रांतों की राजधानियों और कई जिला मुख्यालयों को छोड़ना पड़ा है। लेकिन देश के बड़े इलाके में तालिबान का कब्जा अभी बरकरार है। देश की सत्ता को चुनौती देने के लिए हाल के हफ्तों में राजधानी काबुल में बड़े आतंकी हमले हुए हैं।
लेकिन ताजा बयान में तालिबान ने कहा है कि उनकी प्राथमिकता बातचीत के जरिये अफगानिस्तान की समस्या सुलझाने की है। इसके लिए अमेरिका को अफगानिस्तान से हटना होगा और सरकार बनाने के तालिबान के अधिकार को स्वीकार करना होगा। तालिबान अफगान लोगों की इच्छा के अनुसार सरकार बनाने और उसे चलाने में विश्वास रखता है। अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान के बयान पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने से इन्कार कर दिया है।
अफगानिस्तान में नाटो फौजों के प्रवक्ता कैप्टन टॉम ग्र्रेसबैक ने कहा है कि नागरिकों पर तालिबान के हाल के हमलों ने जता दिया है कि उसका शांति और बातचीत में विश्वास नहीं है। इसलिए उनके प्रस्ताव पर भरोसा नहीं किया जा सकता।