बगदाद/यरूशलम। शरणार्थी शिविरों में रह रहे लोगों की कोरोना वायरस जांच न होने के
कारण कोविड-19 को लेकर दुनिया का डर और बढ़ गया है। विश्व में सात करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जो युद्ध
और अशांति की वजह से बेघर हो गए और इनमें से लगभग एक करोड़ लोग शरणार्थी शिविरों तथा अनौपचारिक
बस्तियों में रह रहे हैं। ऐसे शिविरों तथा बस्तियों में विषाणु संबंधी जांच न होने के कारण महामारी और फैल
सकती है तथा इन जगहों पर इसका तब तक पता नहीं लग सकता जब तक कि लोगों में इसके लक्षण प्रकट न
होने लगें। नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के प्रमुख जन एजलैंड ने कहा,, ‘‘यहां तक कि न्यूयॉर्क और नॉर्वे तक में
पर्याप्त जांच नहीं हो पा रही है, लेकिन कम और मध्यम आय वाले ज्यादातर देशों में इसका अस्तित्व ही नहीं है।’’
उनके समूह ने हाल में अपनी कार्य मौजूदगी वाले सभी 30 देशों की समीक्षा की और पाया कि असल में लोगों के
बीमार होने से पहले कोई जांच नहीं की गई। सीरिया के युद्धग्रस्त इदलिब प्रांत में कोरोना वायरस के मामलों को
लेने के लिए केवल एक छोटा सा स्वास्थ्य प्रतिष्ठान है। बांग्लादेश में सहायताकर्मी विश्व के सबसे बड़े शरणार्थी
शिविर में पृथकवास केंद्र बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। केन्या में दो विशाल शिविरों में अभी बुरा वक्त आना
बाकी है जहां दशकों के अकाल और युद्ध में बचे सोमालियाई शरणार्थी रहते हैं। केन्या के ददाब शिविर में सब्जी
विक्रेता मरियम आब्दी ने कहा, ‘‘यदि यह (कोरोना वायरस) अमेरिका में रोजाना लोगों की जान ले रहा है तो
सोचिए कि हमारा क्या होगा। हम सब मारे जाएंगे।’’ इस शिविर में तंबुओं की ‘अनंत’ पंक्तियों में 2,17,000 लोग
रहते हैं।अनेक शिविरों में दयनीय स्थितियां और खराब अवसंरचना भौतिक दूरी और बार-बार हाथ धोने जैसे नियमों
के पालन का असंभव बना सकती है। शरणार्थी शिविरों को लेकर चिंता इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि इटली,
जर्मनी, ईरान, ऑस्ट्रेलिया और यूनान जैसे देशों में शरणार्थी पहले ही कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जा चुके हैं।
कोरोना वायरस सीरिया में पहले ही पाया जा चुका है जहां एक दशक से चले आ रहे युद्ध ने दो करोड़ 30 लाख
की आबादी में से आधी से अधिक आबादी को विस्थापित कर दिया है।