संयुक्त राष्ट्र। जर्मनी समेत कई अन्य यूरोपीय देशों ने अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच
नागोर्नो-काराबख क्षेत्र में जारी हिंसक संघर्ष के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा करने का अनुरोध
किया है। सूत्रों के अनुसार यूरोपीय देशों ने सुरक्षा परिषद में मंगलवार को एक बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर चर्चा
करने का अनुरोध किया है। जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों की ओर से सुरक्षा परिषद को इस संबंध में आधिकारिक
रूप से अनुरोध भेज दिया गया है। इससे पहले अर्मेनिया और अजरबैजान की सेना के बीच रविवार को नागोर्नो-
काराबख क्षेत्र में एक इलाके पर कब्जे को लेकर हिंसक संघर्ष शुरू हो गया। अर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान
जारी कर कहा कि नागोर्नो-काराबख क्षेत्र में अजरबैजान की सेना के साथ हुए संघर्ष में उसके 16 सैनिक मारे गए
हैं जबकि 100 से अधिक घायल हुए हैं। अर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशनयिन ने ट्वीट कर जानकारी दी कि
अजरबैजान ने अर्तसख पर मिसाइल से हमला किया है जिससे रिहायशी इलाकों को नुकसान पहुंचा है। श्री पशनयिन
के मुताबिक अर्मेनिया ने जवाबी कारवाई करते हुए अजरबैजान के दो हेलीकॉप्टर, तीन यूएवी और दो टैंकों को मार
गिराया है। इसके बाद अर्मेनियाई प्रधानमंत्री ने देश में मार्शल-लॉ लागू कर दिया है। अजरबैजान ने आंशिक रूप से
देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया है। अजरबैजान ने अपने हवाई अड्डों को सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए बंद
कर दिया है। केवल तुर्की को इससे छूट दी गयी है। तुर्की ने खुले तौर पर अजरबैजान को समर्थन देने की घोषणा
की है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अर्मेनिया और अजरबैजान से नागोर्नो-काराबख क्षेत्र में तत्काल
प्रभाव से युद्ध विराम लागू करने की अपील की है और साथ ही कहा है कि वह जल्द ही दोनों देशों के नेताओं से
संपर्क कर इस पर चर्चा करेंगे। गौरतलब है कि अर्मेनिया और अजरबैजान दोनों ही देश पूर्व सोवियत संघ का
हिस्सा थे। लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद दोनों देश स्वतंत्र हो गए। अलग होने के बाद दोनों देशों के बीच
नागोर्नो-काराबख इलाके को लेकर विवाद हो गया। दोनों देश इस पर अपना अधिकार जताते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों
के तहत इस 4400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अजरबैजान का हिस्सा घोषित किया जा चुका है, लेकिन यहां
अर्मेनियाई मूल के लोगों की जनसंख्या अधिक है। इसके कारण दोनों देशों के बीच 1991 से ही संघर्ष चल रहा है।
वर्ष 1994 में रूस की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच संघर्ष-विराम हो चुका था, लेकिन तभी से दोनों देशों के
बीच छिटपुट लड़ाई चलती आ रही है। दोनों देशों के बीच तभी से ‘लाइन ऑफ कंटेक्ट’ है। लेकिन इस वर्ष जुलाई
के महीने से हालात खराब हो गए हैं। इस इलाके को अर्तसख के नाम से भी जाना जाता है।