अमरूद का वनस्पतिक नाम प्सीदिउम गुआयावा लिनिअस है। मिर्तासी परिवार का यह सदस्य सस्ता तथा आसानी से सर्वत्र उपलब्ध होता है। अमरूद का वृक्ष सदा हरा, मध्यम आकार का होता है। इसके पत्ते हल्के हरे, फूल सफेद व सुगंधित होते हैं। इसका गूदा क्रीमी−सफेद तथा कुछ किस्मों में लाल रंग का होता है।
अमरूद विटामिन सी का अच्छा स्रोत है। सौ ग्राम अमरूद में लगभग 299 मिग्रा विटामिन सी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेटस कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन तथा विटामिन बी भी पाए जाते हैं। जहां तक विटामिन सी का प्रश्न है यह इसके बीजों तथा छिलके में सर्वाधिक होता है। अमरूद के पकने के साथ−साथ इसमें विटामिन सी की मात्रा बढ़ने लगती है और पकने पर यह सर्वाधिक होती है।
अच्छी किस्म के अमरूद मीठे, कब्जनाशक, शीतल, तृषाहार हृदय को शक्ति देने वाले, बलदायक तथा शरीर को पुष्ट करने वाले होते हैं। अमरूद के पेड़ के लगभग सभी हिस्सों को विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। अमरूद के पत्तों का काढ़ा आंत्र रोगों में बहुत उपयोगी होता है। साथ ही इसमें कृमियों का नाश भी होता है। उल्टी रोकने में भी यह कारगर सिद्ध होता है।
इस काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों का रक्तस्राव रुकता है तथा मुखव्रणों में भी फायदा होता है। अतिसार में भी इस काढ़े से फायदा पहुंचता है। बच्चों को दस्त लगने पर यह काढ़ा पिलाया जाता है। कंजक्टिवाइटिस होने पर आंखों को इसके पत्तों के काढ़े से धोने से लाभ मिला है।
अमरूद के वृक्ष से निकलने वाला गोंद बलवर्धक दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। हैजे में उल्टियां रोकने के लिए इसके पत्ते तथा छाल मिलाकर काढ़ा दिया जाता है। इससे तुरन्त लाभ मिलता है। भांग या शराब आदि का नशा उतारने के लिए व्यक्ति को अमरूद खिलाना चाहिए या इसके पत्तों के रस का पान कराना चाहिए।
घाव और जख्मों पर अमरूद के ताजा तथा कोमल पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इसके परागकोष जख्मों को सुखा देते हैं। इसकी राख दाहक होती है। अमरूद के पत्तों का लेप लगाने से गठिया की सूजन भी दूर हो जाती है। अमरूद के पत्ते चबाने से दांत का दर्द दूर होता है। दांतों से खून आने की समस्या को दूर करने के लिए इसके पत्तों के काढ़े में फिटकरी मिलाकर कुल्ला करना चाहिए।
अमरूद के पत्तों में एक उड़नशील सुंगधित तेल होता है जिसमें संकोचक गुण होता है इसलिए आंतों के विकारों को दूर करने में इसके पत्ते उपयोगी होते हैं। माइग्रेन के इलाज में भी अमरूद उपयोगी है। इसके लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर कच्चे अमरूद तोड़ें और उन्हें पीस लें। इस लेप को मस्तक के जिस हिस्से में दर्द हो वहां लगाएं। इससे दो−तीन दिन में लाभ पहुंचता है।
पित्त प्रकोप से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन एक अमरूद अवश्य ग्रहण करना चाहिए। यह हाथ पैरों तथा शरीर की जलन दूर करने में भी कारगर सिद्ध होता है। ठडंक के लिए इसके बीज मिलाकर, गूदा पीसकर इसमें गुलाब तथा मिसरी मिलाकर शरबत बनाते हैं इसके सेवन से प्यास बुझती है और ठंडक मिलती है।
अमरूद हल्का रेचक है। खाना खाने के एक घंटे बाद नींबू, नमक और काली मिर्च डालकर अमरूद खाने से शौच खुलकर होता है। परन्तु यह अधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए। इससे कब्ज भी दूर होती है। रक्त विकार के कारण होने वाले फोड़े−फुन्सियों तथा त्वचीय रोगों के निदान के लिए नियमित रूप से दोपहर के समय एक अमरूद खाना चाहिए।
बादी के इलाज के लिए एक पका अमरूद लें और उसे बीच में से काटकर देसी अजवाइन बुरक दें। अब अमरूद का ऊपर वाला हिस्सा नीचे वाले हिस्से पर जमा दें और उनको बीच से चीर कर गीली मिट्टी से बंद कर दें। इस अमरूद को रातभर खुले में रहने दें जिससे इसमें ओस पड़ जाए। सवेरे मिट्टी हटाकर इसे चबा−चबा कर खाएं। इस प्रयोग से एक सप्ताह में बादी का निदान हो जाता है।