बिना ओपन हार्ट सर्जरी के अब वाल्व रिपेयर संभव

asiakhabar.com | January 2, 2019 | 5:30 pm IST
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भारत में यह पहला अवसर है जब एक 69 वर्षीय एक मरीज के हार्टवाल्व की मरम्मत मिट्रा क्लिप की मदद से कैथेटर आधारित प्रक्रिया से की गई। मरीज को बार-बार हार्टफेलियर की शिकायत थी और इस मामले में हार्ट सर्जरी करनाना मुमकिन था। मरीज की 13 साल पहले बायपास सर्जरी हो चुकी है और हाल में उनका हार्ट फूलने लगा था, जो कि वाल्व में रिसाव का परिणाम था। ऐसे मरीजों के मामले में वाल्व की मरम्मत की जाती है या उसे बदला जाता है लेकिन अक्सर यह सर्जरी काफी जोखिम भरी होती है और कई बार ऐसे मामलों में मरीज को कोई फायदा भी नहीं मिलता। लिहाजा, इस मामले में डॉक्टरों ने उनके लिए मिट्राक्लिप प्रोसीजर चुना जो कि सफल रहा है।वास्तव में मिट्राक्लिप दरअसल, हृदय के भीतर स्थित वाल्व की मरम्मत करने की कैथेटर आधारित नॉन-सर्जिकल प्रक्रिया है और इसे कैथ लैब में किया जाता है। इसमें मरीज के ग्रॉइन के भीतर एक बड़ी रक्त वाहिका से स्पेशल कैथेटर को हार्ट के दाएं चैंबर से होते हुए बाएं चैंबर में प्रविष्ट कराया जाता है और ऐसा करने के लिए दोनों के बीच मौजूद पार्टिशन, जिसे इंटर एट्रियल सैप्टम कहा जाता है में छेद करना पड़ता है। इसके बाद, इकोकार्डियोग्राफी और एक्स-रे की मदद से उस वाल्व पर एक क्लिप लगायी जाती है जिससे रिसाव हो रहा है होता है ताकि रिसाव को कम किया जा सके। इसके परिणाम स्वरूप मरीज की हालत में सुधार आने लगता है। मरीज को आमतौर पर 24-48 घंटे के भीतर अस्पताल से छुट्टी भी मिल जाती है।

हाल ही में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ  मेडिसिन में प्रकाशित हाल में संपन्न सी ओएपीटी परीक्षण से यह साबित हुआ है कि मिट्राक्लिप प्रोसीजर से न सिर्फ  मरीज की हालत और उसके अन्य लक्षणों में सुधार होता है बल्कि उसे 2 साल से अधिक का जीवनदान भी मिलता है। भारत में मिट्राक्लिप के आने से हमें उम्मीद है कि उन मरीजों को निश्चित ही फायदा पहुंचेगा जिनकी हालत वाल्व में रिसाव के चलते, दवाओं के बावजूद लगातार बिगड़ रही है और जो कि किसी भी प्रकार की वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने लायक नहीं हैं। ‘‘ दरअसल बिना ओपन हार्ट सर्जरी किए मित्राक्लिप से मिट्रल वाल्व रिपेयर की प्रक्रिया हाल में विकसित इनोवेटिव वैज्ञानिक तकनीक है।

कुछ साल पहले तक यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि हार्ट के भीतर स्थित वाल्व कोकैथेटर की मदद से रिपेयर किया जा सकता है, मसलन-हार्ट को खोले बगैर एंजियोप्लास्टी करना और मरीज को कार्डियो पल्मोनेरी बायपास पर रखना। मिट्रल वाल्व में रिसाव की समस्या कोरोनरी आर्टरीरोग, हार्ट अटैक अथवा बाय पास सर्जरी करवा चुके करीब 5 फीसदी लोगों को अपनी गिरफ्त में लेती है और यह उम्र के साथ बढ़ती रहती है। वाल्व में लगातार रिसाव होने से हार्ट पर दबाव बढ़ता है जिसके चलते मरीज को सांस लेने में तकलीफ  होती है। इस स्थिति में इलाज नहीं कराने से हार्ट एन्लार्ज हो जाता है या फिर हार्ट फेल होने और मृत्यु की आशंका रहती है। ऐसे मरीज आम तौर पर या तो वाल्व सर्जरी के अधिक जोखिम को झेलते हैं या फिर उन्हें इससे कोई फायदा नहीं पहुंचता।

क्या होती है हार्ट वाल्व की बीमारी: वैसे वाल्व हार्ट डिसिज होने के बहुत से कारण है जिनमें से बालवस्था में बार-बार गला खराब रहना, ब्लड में इंफेक्शन होने से, जन्मजात सिकुड़ होने से, डिजेनरेटिव डिसिज, कॉलाजन टिश्यू डिसॉडर होने और तनाव के कारण भी आजकल लोगों को हार्ट की बीमारी हो रही है। हृदय रोगियों की संख्या बढने का कारण हमारा खानपान व बदलती लाइफ  स्टाइल है, जिसमें शरीर के लिए लोगों को फुर्सत नहीं है। काम व टारगेट ने लोगों में तनाव बढ़ा दिया है। जिसके कारण ऐसा हो रहा है।

इसके अलावा भीड़भाड़ वाले इलाकों और गंदगी में पनपने वाले बैक्टीरिया मुंह के रास्ते गले तक जाते हैं, जिससे सबसे पहले गले में खराश होती है। फिर हृदय के वॉल्व के छेद छोटे होने लगते हैं, जिससे खून का बहाव रुक जाता है। अंत में यह बीमारी फेफड़ों तक पहुंच जाती है। इसकी वजह से फेफड़ों में पानी भर जाता है और मरीज को सांस लेने में तकलीफ  होने लगती है, जिसकी वजह से हार्ट फेल हो सकती है। वही इसके लक्षण भी बहुत आम होते है, जिससे इसको अधिकांश लोग नजरादांज कर देते है या सामान्य रोग समझकर अनदेखी कर देते है। लेकिन अगर बच्चों में रह रह कर थ्रोट इंफेक्शन या जोड़ों में दर्द जैसी शिकायतें रहती हैं तो यह रूमेटिक हार्ट डिजीज का सबसे बड़ा लक्षण है। इसका एक कारण अनियमित लाइफ भी है।

अक्सर पेरेंट्स बच्चों में इंफेक्शन को नजर अंदाज कर बड़ी बीमारी को न्यौता देते हैं। इसके साथ ही सांस चढने लगे, सांस लेने में दिक्कत होने लगें, हमेशा खांसी रहना, कमजोरी, थकान आदि का होना भी इसके अन्य लक्षण है। यदि बीमारी लंबे समय तक रहती है तो लीवर के साथ पैरों, एड़ी, पेट और फिर उससे गर्दन में सूजन हो जाती है। आमतौर पर मरीज की भूख कम लगती है जिसके फलस्वरूप मरीज का वजन कम हो जाता है।


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