सुरेंद्र कुमार चोपड़ा
किसी लंबी बीमारी के बाद या फिर मौसम बदलने पर शरीर में आवश्यक न्यूट्रिएंट्स की कमी होने लग जाती है।
इसी कारण हमें वीकनेस महसूस होने लग जाती है। वीकनेस मतलब इम्यूनिटी का कम होना। ऐसे में आपका
खानपान इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत मदद करता है। इसके अलावा आप खुद प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ
योगासनों को भी प्रयोग में ला सकते हैं।
तकिये की मदद से: दो से तीन तकिये को एक-दूसरे के ऊपर रखें। इसको खम्बे की तरह रखने के बाद, इसके
ऊपर अपना दांया पैर रखें। बाएं पैर को पीछे की तरफ थोड़ा खींचें। तकिये नितम्बों से घुटने तक सहारा देते हैं।
अब, आगे की तरफ देखें, और हाथ चेहरे के ऊपर होना चाहिए। इस तरह करने से, सीने के पास की मांसपेशियां
खिंचती हैं। इस आसन से उन लोगों को फायदा होगा, जिनके स्तन कैंसर की वजह से हटा दिए जाते हैं। उस जगह
की त्वचा में आराम मिलता है। इस आसन से उन लोगों को बेहद फायदा होता है, जो लोग बीमार होते हैं। इससे
प्रतिरोध क्षमता और आत्मविश्वास बढ़ता है।
सेतु बंधासन: छत की तरफ देखेते हुए फर्श पर लेट जाएं, दोनों पैरों को मोड़ें। दोनों हाथों को दोनों तरफ रखें।
कोमल तकिये को नीचे ऐसे रखें की यह नितम्ब को छू रहा हो। यह आसन तीन मिनट तक रहना चाहिए। इस
आसन से रीढ़ महबूत होती हैं। स्तन के आस-पास के हिस्से को इससे आराम मिलता है। यह आसन विकिरण और
कीमोथेरेपी के बुरे प्रभाव से बचाता है। जो लोग बुखार से पीड़ित होते हैं उनके लिए भी यह आसन लाभदायक है।
इसके साथ प्राणायाम किया जाना चाहिए।
कुर्सी के साथ त्रिलोकासन: एक कुर्सी लें जो ज्यादा ऊंची न हो, दोनों पैरों को अलग-अलग रखते हुए खड़े हो जाएं।
दाएं पैर को ऐसे ही रहने दें, और बाएं पैर को कुर्सी पर रखें। मतलब कि कुर्सी बाएं पैर के जांघ वाले हिस्से को
सहारा देती है।अब दोनों हाथों को किनारे की तरफ खींचें। इसका मतलब कि बांया हाथ भी, सिर के ऊपर दांई तरफ
घुमेगा। अब इसी प्रक्रिया को दूसरे तरफ करें। इस आसन को दोनों तरफ 1 से आधा मिनट करना चाहिए। यह
आसन सीने की मांसपेशियों के दबाव को कम करता है। इसे करने से सीने के पास की मांसपेशियों को आराम
मिलता है। शरीर को आराम मिलता है और प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है।
बद्ध-पद्मासन: समतल और स्वच्छ स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर सामान्य स्थिति में बैठ जाएं। अब दाएं पैर
को घुटनों से मोड़कर बाएं जांघ पर एड़ी को दाएं कमर से सटाकर रखें। इसी तरह बाएं पैर को भी घुटनों से मोड़कर
दाएं जांघ पर एड़ी को बाएं कमर से सटाकर रखें। इसके बाद बाएं हाथ को पीछे की तरफ से लाकर दाएं पैर के
अंगूठे को पकड़ लें और दाएं हाथ को पीछे से लाकर बाएं पैर केअंगूठे को पकड़ लें। इस स्थिति में आगे पिण्डलियों
व पीछे हाथों से एक प्रकार से क्रास का निशान जैसा बन जाएगा। बद्ध-पद्मासन की इस स्थिति में आने के बाद
रीढ़ की हड्डी, छाती, सिर व गर्दन सहित पूरे शरीर को सीधा रखें। सिर एकदम सीधा और आंखों को सामने रखें।
अब सांस अंदर खींचते हुए छाती को बाहर निकालें और शरीर को ऊपर की ओर खींचें। अपनी नजर को नाक के
अगले भाग पर रखें। आसन की स्थिति में जब तक रहना सम्भव हो रहें। गहरी सांस लेते रहें। इस आसन का
अभ्यास पैरों की स्थिति बदल कर भी करें।
मंडूकासन: एक कहावत है कि मेढक को कभी जुकाम नहीं होता, ऐसा मेढक के शरीर की बनावट की वजह से होता
है। मंडूक आसन में हम भी अपनी बॉडी मेढक जैसा बनाते हैं। सबसे पहले पीठ सीधी रखते हुए वज्रासन में बैठ
जाएं और दोनों हाथों की मुठ्ठी अंगूठा अंदर रखते हुए बंद करें। मुठ्ठी बंद करने के बाद जहां उंगुलियां मुड़ी होती
हैं और उंगलियों के बीच जो गड्ढे बने होते हैं उनमें दूसरे हाथ के उभरे भाग को फंसा दें। अब हाथों की मुठ्ठी की
तरफ देखते हुए इसे नाभि पर रखते हैं फिर सांस छोड़ते हुए आगे की तरफ झुकते हैं। झुकने के बाद नजर सामने
और रीढ़ की हड्डी सीधी रखें। दोनों हाथ की मुठ्ठी से नाभि पर दबाव बनाते हुए सांस को रोकें और फिर सांस को
सामान्य कर दें। पहले की पोजिशन में आ जाएं।