प्रदूषित पर्यावरण, बढ़ते वायु प्रदूषण और अल्ट्रा वॉयलेट किरणों के बढ़ते प्रभाव की वजह से आंखों पर भी प्रभाव
पड़ रहा है। कॉर्निया, पलकों, सिलेरिया और यहां तक कि लेंस पर भी पर्यावरण का असर होता है। बढ़ते तापमान
और पर्यावरण के चक्र में आते बदलाव के चलते क्षेत्र में हवा खुश्क हो रही है। इस वजह से आंखें में ज्यादा खुश्की
आ रही है, जिसके चलते आंसू नहीं बनते या बहुत जल्दी सूख जाते हैं।वायु प्रदूषण लंबे समय से सांस प्रणाली की
समस्याओं का कारण बन रहा है।
हाल ही में इसका असर आंखों पर भी नजर आने लगा है। लकड़ी या कोयले जलते समय उसके संपर्क में आने से
विकासशील देशों में ट्रोचमा की वजह से आंखों में जख्म हो जाते हैं। उम्रभर संक्रमण होने से पलकों के अंदर जख्म
हो सकते हैं, जिससे पलकें अंदर की ओर मुड़ जाती हैं और कोर्निया से रगड़ खाने लगती हैं और क्षति पहुंचा देती
हैं, जिससे नजर भी चली जाती है।इन दिनों कोहरे से आंखों में जलन, आंसू आना, नाक में खुजली, गले में खराश
और खांसी जैसी सामान्य दिक्कतों के साथ श्वास के रोगियों को गंभीर समस्या हो सकती है। बुजुर्गों और बच्चों पर
ऐसे मौसम और प्रदूषण का गहरा असर होता है, क्योंकि इनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। कमरे को भी गर्म
रखें और घर की खिडम्की-दरवाजे बंद रखें, ताकि कोहरे का असर घर के अंदर न आ सके।
इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं कि ओजोन
की क्षति होने से अल्ट्रावायलेट किरणों का असर बढ़ रहा है, जिससे कोर्टिकल कैटेरेक्ट का खतरा बढ़ जाता है। सूर्य
की खतरनाक किरणों के लगातार संपर्क में आने से आंखों के लेंस के प्रोटीन की व्यवस्था बिगड़ सकती है और
लेन्ज एपिथीलियम को क्षति पहुंच सकता है, जिससे लेंस धुंधला हो जाता है।वह कहते हैं कि हैट पहनने से यूवी का
असर 30 फीसदी तक कम हो सकता है। यूवी प्रोटेक्शन वाला साधारण धूप का चश्मा लगाने से 100 फीसदी तक
सुरक्षा हो सकती है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पूरे समाज को आंखों को होने वाले गंभीर नुकसान के बारे में जागरूक
होना चाहिए। भारतीय लोगों में पहले ही विटामिन-डी की कमी है, इसलिए इन सावधानियों पर गौर करना बेहद
जरूरी है।