आज की बदलती हुई जीवन शैली में फास्ट फूड संस्कृति काफी तेजी से विकसित हो रही है। बच्चे, बड़े और बूढ़े
सभी चटकारे ले लेकर बर्गर, नूडल्स, आइसक्रीम, चाकलेट्स, टाफियां आदि का सेवन कर रहे हैं। इन खाद्य पदार्थों
के सेवन से जीभ को तृप्ति तो जरूर मिलती है लेकिन लोगों को मालूम नहीं है कि वे इन खाद्य-पदार्थों का सेवन
करके अनजाने में मसूड़ों और दांतों की बीमारियों को आमंत्रित कर रहे हैं।
आज 4-5 वर्ष के बच्चे भी गंभीर मसूड़े के रोगों का शिकार हो रहे हैं। रोगग्रस्त बच्चे से मसूड़ों से रक्त आना
लगता है, बच्चे स्टोमोटाइटिस नामक एक खतरनाक मसूड़ों की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। इस रोग में छोटे-छोटे
अल्सर हो जाते हैं जिसके कारण बच्चा कुछ भी नहीं खा पाता। लिम्फ नोड्स बढ़ जाते हैं। बच्चा को बुखार आने
लगता है। ये दोनों ही बीमारियां सांमण के कारण होती हैं। इनके अलावा दांतों में कीड़ा लगना भी बच्चों की आम
बीमारी हो गयी है। इन बीमारियों के उपचार में लापरवाही बरतने से रोग बढ़कर खतरनाक रूप आख्तयार कर लेता
है।
बच्चों को इन रोगों से बचाना मुश्किल नहीं है। यदि माता-पिता सुबह नाश्ता करने के बाद तथा रात में खाने के
बाद मुलायाम टूथब्रश से ब्रश करने की नियमित आदत डलवाएं तो मसूड़ों व दांतों की बीमारियों से बच्चों के दांतों
वमसूड़ों को आसानी से बचाया जा सकता है। समय-समय पर बच्चों को टूथब्रश को बदलते रहना चाहिये। रेशेदार
फल व सब्जियों के सेवन से मसूड़े स्वस्थ रहते हैं। इसलिए रेशेदार फल व सब्जियां नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा
में बच्चों को खिलानी चाहिये।
रेशेदार चीजों को खाने से मसूड़ों की प्राकृतिक तौर पर मालिश हो जाती है जिससे इनमें दोनों ओर से रक्त प्रवाह
होने लगता है। फास्ट फूड दांतों के मध्य में फंसकर सड़ने लगते हैं जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। 18 से
40 वर्ष की उम्र के लोग पीरिओडोनटाटिस नामक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। यह मसूड़ों की एक बीमारी है।
इस रोग से ग्रसित होने पर हड्डी घुलने लगती है जिसके कारण दांत कमजोर हो जाते हैं तथा हिलने लगते हैं।
रोगग्रस्त व्यक्ति को शीघ्र दंत चिकित्सक से मिलकर उपचार करा लेना चाहिए। इससे दोनों दांतों के खराब होने का
खतरा टल जाता है।
इस रोग के निम्न लक्षण है:-
दांतों से खून व मवाद आना।
मुंह से बदबू आना।
दांतों में छेद हो जाना।
दांतों में हल्का-हल्का दर्द होना।
दांतों का हिलना।
दांत जिस हड्डी में गड़े होते हैं वह हड्डी बुढ़ापे में खाने का भार नहीं बर्दाश्त कर पाती तथा अन्न के कण दांतों के
मध्य फंस जाते हैं क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ दांत एक दूसरे से अलग हो जाते हैं जिससे दांतों के बीच दरार बन
जाती है। रोग से बचने के लिये रोगग्रस्त दांत को निकलवाकर कृत्रिम दांत लगवा लेना चाहिये। आजकल मसूड़ों के
रोगों के कारण हार्टअटैक, मधुमेह, न्यूमोनिया और श्वांस संबंधी रोग भी होने लगे हैं, इसलिए कम से कम छः
माह पर दांतों की जांच कराते रहनी चाहिये। दिन में दो बार ब्रश तथा प्रत्येक खाने के बाद कुल्ला अवश्य करना
चाहिये। हमेशा नरम ब्रिसल्स वाले टूथब्रश का इस्तेमाल करना चाहिए। कड़े ब्रिसल्स दाले टूथब्रश से दांतों के इनेमल
नष्ट हो जाते हैं और ऐसे में दांतों में ठंडा गरम लगने लगता है। अगर आप उपरोक्त बातों का ध्यान रखेंगे तो
आप के दांत आसानी से रोगग्रस्त नहीं होंगे।