सुरेंदर कुमार चोपड़ा
आज की दौड़-भाग भरी जिंदगी में लगभग सभी के लिए संतुलित दिनचर्या अपनाना मुश्किल हो गया है। ऐसे
असंतुलन से ऊपरी तौर पर तो सभी खुद को स्वस्थ्य महसूस करते हैं, लेकिन आंतरिक स्तर पर व्यक्ति धीरे-धीरे
बीमारियों से घिरने लगता है। जिंदगी और खानपान के इस असंतुलन से ज्यादातर लोगों में किडनी की बीमारियों
की शिकायत सामने आ रही है।
चिकित्सकों की मानें तो संतुलित दिनचर्या अपनाए तो गुर्दे (किडनी) की बीमारियों से बचा जा सकता है। बीमारी के
प्रति जागरूकता लाने हर साल मार्च के हर दूसरे बृहस्पतिवार को विश्व गुर्दा दिवस मनाया जाता है। इस बार यह
12 मार्च को है। शुरुआती दौर में जांच और प्रबंधन से बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और ऐसे में
इलाज के परिणाम भी अच्छे आते हैं।
साइलेंट शुरूआत
गुर्दा खराब होने के शुरुआती चरण में कोई भी लक्षण सामने नहीं आता है। यह साइलेंट रहता है। यही वह चरण
होता है जब बीमारी का इलाज पूरी तरह संभव होता है, ऐसे में शुरुआती दौर में जांच और इलाज बेहद महत्वपूर्ण
हो जाता है। अगर इसका वक्त पर इलाज नहीं किया गया तो आगे चलकर किडनी फेल हो सकती है। कई मामलों
में इसके लक्षण भी देखे गए हैं। इनमें पेशाब में खून आना, पैरों व आखों में सूजन आना, शीघ्र थकान महसूस
होना, ब्लड प्रेशर अनियंत्रित होना जैसे लक्षण शामिल हैं।
ब्लड प्रेशर और शुगर मरीज रखें खास ध्यान
डॉ. विनाद बलेचा बताते हैं कि शरीर में दो गुर्दे होते है, जो रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ पेट के पिछले भाग में होते
है। मूल रूप से गुर्दे हमारे शरीर में उत्पन्न हुए जहर को बाहर निकालकर खून की सफाई का काम करते है। आज
जबकि रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर और शूगर की बीमारी बढ़ रही है तो उससे गुर्दो के लिए भी परेशानी बढ़ गई है।
इन दोनों रोगों का गुर्दो पर सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में जब गुर्दे ठीक से काम नहीं करेंगे तो
इससे शरीर में रोगों की संख्या भी बढ़ती जाती है। यदि शरीर में लगातार ऐसी स्थिति बनी रहती है तो एक समय
के बाद गुर्दे काम करना बंद कर देते है।
गुर्दे हमारे शरीर में फिल्टर का काम करते है। इससे शरीर में पानी व नमक की मात्रा नियंत्रित रहती है। गुर्दे
फिल्टर के अलावा खून की कमी को भी दूर करते है और हड्डियों को मजबूत रखते है। यदि गुर्दो में दिक्कत होती
है तो फिर शरीर के दूसरे अंग भी ठीक तरह से काम नहीं करते। ऐसे में ब्लड प्रेशर और शुगर के मरीजों को
अपनी खास केयर करनी चाहिए। डॉ. विनीत चतुर्वेदी बताते हैं कि ऐसे लोग जिन्हें डायबीटीज, हाई ब्लड प्रेशर,
एथरोस्क्लेरोटिक हार्ट डिजीज, पेरिफरल वस्कुलर डिजीज है और किडनी फेलियर का उनका पारिवारिक इतिहास है
तो उनमें गुर्दा खराब होने का खतरा काफी ज्यादा रहता है।
समय-समय पर हो स्वास्थ्य की जांच
गुर्दे की बीमारी का शीघ्र पता चलने पर इसमें पूर्ण इलाज संभव है और बीमारी को बढने से रोका जा सकता है।
इसलिए जरूरी है कि ब्लड प्रेशर व शूगर की नियमित जाच कराई जाए। खून की मात्रा और प्रोटीन की जांच के
अलावा खून में यूरिया, किडनी की पथरी, रुकावट, गदूद व कैंसर की बीमारी की भी नियमित जाच कराई जानी
चाहिए। ऐसे में समय रहते बीमारी के इलाज से आसानी से बचा जा सकता है।
करें बचाव
किडनी की बीमारी में समय रहते गुर्दा ट्रासप्लाट से नई जिंदगी भी शुरू हो सकती है, लेकिन बेहतर यही है कि
व्यक्ति स्वयं बचाव के तरीकों पर ध्यान दें। डॉ. जे. एस. नामधारी ने बताया कि सतुंलित जीवन शैली में नियमित
व्यायाम, रोजाना तीन से चार लीटर पानी पीना शामिल है। इसके अलावा धूम्रपान, शराब के सेवन और फास्ट फूड
से बचें, खाने में नमक की मात्रा कम रखें, दर्द की गोलियों का अनावश्यक सेवन न करे, ब्लड प्रेशर व शूगर की
नियमित जाच कराएं, 35 वर्ष की उम्र के बाद खून व पेशाब की जाच अवश्य कराएं।