अर्पित गुप्ता
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद एक माह बीत चुका है। हालात सामान्य हो रहे हैं
और अराजक भी हैं। संचार व्यवस्था बहाल हुई है, लेकिन इंटरनेट पर अब भी पाबंदियां हैं। घाटी में
मोबाइल फोन अभी गूंजने नहीं लगे हैं। विपक्ष के कई नेता और अलगाववादी चेहरे आज भी हिरासत में
हैं। पाकपरस्त ताकतें अब भी पोस्टर चिपका कर धमकाने में जुटी हैं। कर्फ्यू जैसे हालात के बावजूद
पत्थरबाजी की घटनाएं हुई हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन के अपने दावे हैं। दिल्ली में गृह मंत्री अमित
शाह ने कश्मीरी पंचों-सरपंचों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और जमीनी हकीकत जानने की
कोशिश की। गृह मंत्री ने वादा किया है कि सरकार हर गांव के पांच लोगों को सरकारी नौकरी देगी।
विकास योजनाओं में पंचायतों को भागीदार बनाया जाएगा। मोदी सरकार प्रधानमंत्री किसान योजना,
किसान पेंशन योजना, जनधन योजना आदि 85 केंद्रीय योजनाओं की शुरुआत कश्मीर में करवा चुकी है।
राज्यपाल ने 50 हजार नई भर्तियों की घोषणा की है। कश्मीर के ही 29,000 युवाओं ने भारतीय सेना में
भर्ती होने के लिए नामांकन किए थे। भर्ती की प्रक्रिया नौ सितंबर तक जारी रहेगी। पहली बार कश्मीरी
नौजवानों की भीड़ की जुबां से ‘भारत माता की जय’ और ‘जयहिंद’ सरीखे नारे सुनाई दिए हैं। खासकर
कश्मीर घाटी में प्रशासन का दावा है कि 93 फीसदी इलाकों में दिन की पाबंदियां हटा दी गई हैं। 92
पुलिस स्टेशनों पर से भी पाबंदी हटा ली गई है। टेलीफोन के 76 एक्सचेंज के तहत करीब 26,000 फोन
लैंडलाइन चालू कर दी गई हैं। एक महीने के दौरान करीब 2.5 लाख बीमार लोगों ने अस्पताल की
ओपीडी में इलाज कराया है। अब दवाइयां भी उपलब्ध हैं। सार्वजनिक परिवहन सड़कों पर आने लगा है
और दूसरे राज्यों के लिए बसें भी उपलब्ध हैं। करीब 1.5 लाख मीट्रिक टन फल कश्मीर के बाहर भेजे
गए हैं। साफ है कि ट्रक चलने लगे हैं। करीब 1500 प्राथमिक और 1000 मिडिल स्कूल खुल गए हैं।
बच्चे भी आने लगे हैं। सबसे गौरतलब यह है कि 25 अगस्त से श्रीनगर सचिवालय पर सिर्फ राष्ट्रीय
ध्वज ‘तिरंगा’ ही लहरा रहा है। अब राज्य के सभी सरकारी दफ्तरों पर तिरंगा ही लहराया जाएगा। बेशक
कश्मीर के सामान्य होने में कुछ और वक्त लगेगा, लेकिन परिवर्तन के तौर पर ‘नया कश्मीर’ महसूस
होने लगा है। अब नई फिजाओं में पंचों-सरपंचों को पुलिस सुरक्षा मिलेगी और उनका बीमा कराया
जाएगा। जिन हालात और विरोध के तहत वे चुने गए हैं और अपने गांव जैसे क्षेत्र के लिए काम करना
चाहते हैं, अब उन्हें संवैधानिक अधिकार भी दिए जाएंगे। ‘नए कश्मीर’ की सूरत यह है कि एक कंपनी ने
कश्मीर में 1000 करोड़ रुपए निवेश करने की घोषणा की है। अभी तो अक्तूबर-नवंबर में वहां निवेशक
सम्मेलन होना है। इसके अलावा कर्नाटक और महाराष्ट्र के साथ कई राज्यों के पर्यटन विभागों ने जम्मू-
कश्मीर में होटल और रिसॉर्ट आदि खोलने की तैयारी शुरू कर दी है। ये बदले हुए कश्मीर की एक
तस्वीर के संकेत हैं। इस माह के दौरान पाकिस्तान भी कश्मीर पर खूब चिल्लाया, लेकिन अब उसे पूरी
तरह एहसास हो गया है कि मुस्लिम देश भी उसके साथ नहीं हैं। सभी बड़े देश भारत और शिमला करार
के पक्षधर हैं, लिहाजा वहां के वजीर-ए-आजम इमरान खान समेत मंत्रियों की जुबां भी बदलने लगी है।
अब वे मानने लगे हैं कि पाकिस्तान की फौज पांच-छह दिन से ज्यादा युद्ध नहीं लड़ पाएगी। विदेश
मंत्री आपसी बातचीत की पेशकश करने लगे हैं, लेकिन अब भी कुछ शर्तों के साथ। खुद इमरान ने पलटी
मारी है कि पाकिस्तान पहले परमाणु हमला नहीं करेगा। बहरहाल अब भी कश्मीर और उसके बाहर ऐसे
तत्त्व हैं, जो 370 को समाप्त करने पर छाती पीट रहे हैं। ऐसा एक लोकतांत्रिक देश में संभव होता है,
लेकिन यह मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि अब कश्मीर बदल रहा है, लिहाजा उस बदले चेहरे
का स्वागत किया जाना चाहिए।