-सनत जैन-
द्वितिय विश्व युध्द के बाद अमेरिका और रूस दो महाशक्ति के रूप में उभरे थे। 1982 में राष्ट्रपति ब्रजनोव की
मृत्यु के बाद सोवियत संघ अर्थ-व्यवस्था एवं राजनैतिक दृष्टि से कमजोर हो गया था। उस समय अमेरिका ने रूस
को कमजोर करने के लिए काफी पैतरे आजमाए थे। फलस्वरूप 1991 में सोवियत संघ विघटित हो गया। सोवियत
संघ से जुड़े कई राज्यों ने अपने-आपको स्वतंत्र घोषित कर सोवियत रूस का अस्तित्व समाप्त कर दिया था।
ठीक 30 वर्ष बाद अमेरिका और नाटो देशों ने मिलकर रूस को चुनौती देने के लिए सीमावर्ती देशों में अपनी घुसपैठ
बढ़ा दी थी। रूस को अपने पड़ोसी देशों से लगातार चुनौती मिल रही थी। अमेरिका सोवियत संघ से अलग हुए
हिस्सों में अपना प्रभाव बढ़ाता ही जा रहा था। जिसके कारण रूस के राष्ट्रपति पुतिन पिछले कई वर्षों से अमेरिका
को इस क्षेत्र में घुसपैठ करने से रोक रहे थे।
राष्ट्रपति पुतिन ने अपने शासन काल में रूस को काफी मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर लिया है। तकनीकी और
आधुनिक शस्त्रों तथा परमाणु हथियारों पर रूस की आत्मनिर्भरता और अमेरिका के रक्षा व्यवस्था में जो चुनौतियां
मिल रही थी, उसको खत्म करने के लिए अमेरिका एवं नाटो संगठन रूस की सीमा के आसपास लगातार अस्थिरता
पैदा कर रूस को चुनौती देने का काम कर रहे थे।
वैश्विक संधि के बाद पिछले 30 वर्षों में सारी दुनिया के देशों के बीच व्यापारिक संबंध बने हैं। आना-जाना आसान
हुआ है। इंटरनेट, ऑनलाइन कारोबार, डिजिटल तकनीकी का लाभ सारी दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच गया है।
इस बदलाव के कारण आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक सोच बदली है। इसी का फायदा उठाते हुए अमेरिका और चीन
अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए पिछले एक दर्शक से हर संभव प्रयास कर रहे हैं। रूस और चीन के बीच राजनायिक
संबंध बेहतर है। रूस को अमेरिका से मिल रही चुनौती के बीच चीन ने रूस के साथ अपने रिस्ते और बेहतर
बनाये। वहीं अमेरिका नाटो संगठन के माध्यम से राष्ट्रपति पुतिन एवं रूस के लिए सिरदर्द बने हुए थे। रूस के
पड़ोसी देशों को हथियारों की सप्लाई कर रूस को चुनौती देने की जो रणनीति अमेरिका ने अपनाई थी। उस का
जवाब देते हुए रूस के राष्ट्रपति पुतिन एक बार फिर ताकत का अहसास कराते हुए सोवियत संघ से जुड़े देशों को
अमेरिका के प्रभाव से बाहर लाने के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ रहे है।
यूक्रेन एवं रूस की लड़ाई इसी का परिणाम है। यूरोपीयन मीडिया इस लड़ाई से रूस को कमजोर बनाकर हतोसाहित
कर रहा था। पिछले कई माहों में रूस पर प्रतिबंध लगाकर पुतिन को धमकाने का प्रयास कर रहे थे। रूस के
राष्ट्रपति पुतिन ने सौ-सुनार की और एक लुहार की तर्ज पर इस लड़ाई को अंजाम पर पहुंचा दिया है। पुतिन के
इस रूख से यूरोपीय देश एवं संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थायें रूस के हमलों और आक्रमक रूख से हैरान है। वैश्विक
स्तर पर जो घटनाचक्र बना है। उसके बाद लगता है रूस के खिलाफ लगे प्रतिबंधों को समाप्त करके ही इस लड़ाई
को रोका जा सकता है। राजनैतिक विशेषज्ञों की माने तो राष्ट्रपति पुतिन 30 वर्ष सोवियत संघ का पुराना दबदबा
बनाए रखने के लिए सुनयोवित और सफल रणनीति के तहत कार्य कर रहे है। कोरोना महामारी के बाद सारी
दुनिया के देश आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में यूक्रेन एवं रूस के इस युद्ध का पलड़ा रूस
के पक्ष में भारी है। 1991 में राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव संघ को विघटित होने से नहीं रोक पाए थे। 2022 में
राष्ट्रपति पुतिन का अलगाववादी ताकतों को जवाब देकर पुराना गौरव हासिल करने का प्रयास सफल होता दिख रहा
है।