अशोक कुमार यादव मुंगेली
जो पहले हृदय का चमकीला हार था,
वो अब बन गया काँटेदार नुकीले शूल।
जिसे छाती से हमेशा लगाए रखता था,
यह मेरी थी प्रथम सबसे बड़ी भूल।।
दुःख में हाथ मल कर, हाथ धो बैठा,
रात-दिन मार रहा हूँ अपना हाथ-पैर।
मेरा हाथ छोड़ा, हाथ का मैल समझ,
क्या किसी जन्म का था कोई बैर?
दिल भर आया, दिल बहुत बैठ गया,
बैठे हुए तोड़ रहा हूँ दिल के फफोले।
दिल में करार नहीं, दिल मसोस रहा,
दिल का गुबार बाहर हो रहे होले-होले।।
काला कलेजा वाली, खा रही कलेजा,
कलेजा पर साँप लोट रहे झुंड-के-झुंड।
कलेजा काँप रहा छलनी हो-हो कर,
धक से होकर कलेजा हुआ सूंड-मुंड।।
मन में बसने वाली, मन से उतर गयी,
मेरे मन के चोर, अब मन फट गया।
रो-रोकर माँगता रहा प्राणों की भीख,
निर्दयी प्राण-पखेरू उड़ा कर ले गयी।।