-प्रभुनाथ शुक्ल-
गजोधर भईया हिंदी की उन्नति को लेकर बेहद परेशान रहते हैं। बेचारे हिंदी के विकास में खुद का विकास खोजते हैं। सितंबर का पुण्य मास लगते ही उनका मुरझाया चहेरा खिल उठता है। उनके भीतर सुस्त पड़ा संवृद्ध हिंदी का सपना कुलाचें मारने लगता है। क्योंकि पवित्र मास का दूसरा पखवाड़ा हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका इंतजार अनेका नेक हिंदी प्रेमियों को रहता है। जिस तरह पितृपक्ष में पितरों का तर्पण पखवाड़ा होता ठीक उसी तरह अपनी बेचारी हिंदी को याद किया जाता है।
14 सितंबर से हिंदी का श्राद्ध पखवारा मनाया जाता है। इस दौरान हिंदी विकास को लेकर बड़ा शोर रहता है। सरकारी कार्यालय और बैंकों में हिंदी को संवृद्ध करने के लिए बड़े-बड़े पोस्टर लगते हैं। सभी को हिंदी में कार्य करने की नसीहत दी जाती है। इस दौरान अनेक हिंदी सेवियों को सम्मानित किया जाता है। यह ऐसे लोग रहते हैं जिनका प्रेम सिर्फ मंच और सोशलमिडिया तक हिंदी प्रेम दीखता है। क्योंकि सितंबर माह आने पूर्व हिंदी सेवी की तैयारी में वे जुट जाते हैं। तमगा लेने बाद फिर अंग्रेजी मैम के के लिए काम करते हैं।
अगर आप हिंदी सेवी हैं तो आपको मालूम होगा कि पितृपक्ष का समय भी हिंदी श्राद्ध पखवाड़े के ठीक बाद आता है। कितना अच्छा संयोग है। बेचारी हिंदी को 365 दिन कोई नहीं पूछता, लेकिन 15 दिन बेचारी सरकार से लेकर साहित्यकार की जुबान पर होती है। लेकिन पखवारा बीतने के बाद कोई घास नहीं डालता। ठीक वैसे ही जैसे चुनाव जीतने के बाद सरकार और नेता जनता को भूल जाते हैं।
हमारे गाजोधर भईया हिंदी के सबसे बड़े सेवक माने जाते हैं। मोहल्ले में उन्हें हिंदीसेवी के रूप में जाना जाता है। हिंदी पखवाड़े भर उन्हें फुर्सत नहीं मिलती है। हर जगह उन्हें सम्मानित किया जाता है। साल, नारियल, प्रशस्ति पत्र एवं अंगवस्त्र से उनका घर भर जाता है। लेकिन हिंदी पखवारा बीतने के बाद उन्हें कोई घास नहीं डालता। गजोधर भईया जैसे हिंदी सेवी की दुर्गति उस समय और बढ़ जाती है जब रुकी हुईं वृद्धा पेंशन को चालू करवाने के लिए विभाग के उसी बाबू की जेब गर्म करते हैं जिसने हिंदी दिवस पर उन्हें अंगवस्त्र और श्रीफल भेंट किया था। उस समय उनकी हिंदीसेवा का त्याग अखाड़े में पटखनी खाए पहलवान की तरह होता है। लेकिन अब करें क्या दुनिया के दस्तूर को भला वे कैसे मिटा सकते हैं।
वैसे उन्हें अंग्रेजी बिल्कुल नहीं पसंद है। यह बात अलग है की हिंदी की खाल ओढ़कर वे अंग्रेजी से ईलू-ईलू करते हैं। उन्हें अंग्रेजी नाम से भी बड़ी नफ़रत है। लेकिन अंग्रेजी नहीं बोलते। हाँ अपने कुत्ते का नाम डैनियल, बिल्ली का नाम मर्सी, तोते का नाम टॉम ही रखते हैं। हिंदी नहीं अंग्रेजी गाने पर वे डांस करते हैं। बेटे का नाम इंग्लिश मीडियम स्कूल में लिखवाते हैं। चुनाव में बढ़िया-बढ़िया नारा वे अंग्रेजी में ही गढ़ते हैं।
वैसे भी गाजोधर भईया हिंदी दिवस अंग्रेजी में मानते हैं। लोगों को हिंदी दिवस की बधाई अंग्रेजी में लिख कर देते हैं। रात्रि को भोजन नहीं डिनर करते हैं। दोपहर को लंच और सुबह गुड़ मॉर्निंग करते है। सुबह टहलने नहीं मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं। हिंदी के लिए जब मोबाइल कि की-पैड दबाते हैं तो अंग्रेजी में ही उन्हें हिंदी के लिए एक नहीं वन दबाना पड़ता है। मोबाइल पर बातचीत शुरू करने के पूर्व वे हैलो करते हैं। उनका पोता नमस्ते नहीं गुड़ मॉर्निंग करता है। रात्रि में गुड़ नाईट और बाय-बाय बोलता है।
जन्मदिवस की शुभकामना का संदेश वह हैप्पी बर्डे टू यू बोल कर देते हैं। फेसबुक पर वह नाइस, रिप और वेलकम बोलते हैं। पोते-पोती को पढ़ाते हैं तो ए फॉर एप्पल और बी फॉर बॉल बोलते हैं। एक -दो-तीन-चार, हिंदी बोलो बार-बार पढ़ाने के बजाय वे वन टू का फोर, फोर टू का वन, माई नेम इज गाजोधर पढ़ाते हैं। फिर तुम्हीं बताओ गजोधर भईया ! खाओगे हिंदी का और गाओगे अंग्रेजी का। सिर्फ शाल ओढ़ कर हिंदी को बचाओगे। गजोधर भईया आप जैसे लोग हिंदी की लुटिया नहीं डूबाएंगे तो क्या करेंगे।